Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 437
________________ चतुर्थ प्रकाश. ३ए कदि तेओ एम कहे के, “ दिशावंदन समये अमारा मनमां सिक ममुख रहेला , तेथी तेम करवामां दोष नथी," तो अमे पण कहीशु के, "श्री जिन प्रतिमाने वंदन करवा समये अमारा मनमा पण सिद्ध प्रमुख होय ." आधीनावनी अपेक्षाए बने ठेकाणे न्यायतुं समानपणुं , तेथी को प्रकारे पण जिन पू. जानो निषेध करवो युक्त नथी. वली सूत्रने विषे गुरुना आसनादिकनी आशातना वर्जवाने कहेब , तो ते पाट पाटला प्रमुख आसनादिक अजीवरुप , उता गुरुना संबंधने लइने ते स्थापित होवाथी तेनुं जे बहुमान करवामां आवे , ते वस्तुताए गुरुचेंज बहु मान , तेवी रीते जिन प्रतिमा, जे बहु मान छे, ते परमार्थपणे सिघ भगवान्नु ज बहु मान ले. वली सुधर्मा सनामा जे जिन जगवान्नी दाढाओ 3, तेओ अजीवरुप छे, बतां सिद्धांतने विषे तेमनुं वंदनिकपणुं तथा पूजनिकपणुं कहेढुं . ते साये तेमनी आशातना न करवी एम पण जणावेदूं , तो पछी जिन मुजानी वंदनीयतामां अने पूजनीयतामां शो संदेह राखयो ? वनी पंचमांगनी आदिमां " णमो बंजिए बीविए" ए वाक्योए करी श्री सुधर्मा स्वामीए पोते अक्षरविन्यासरुप एवी लीपिने जो नमस्कार कर्यो तो तेमना वचनने अनुसारे प्राणीओने लीपिनी जेम जिन प्रतिमाने नमस्कार करवामां क्यो दोष उत्पन्न थाय ? कारण के, बने ठेकाणे स्थापना, तो समानपणुं बे. तेम वली ज्यारे त्रैलोक्यस्वामी जगवान् समवसरणने विषे मूलरुपे पूर्व दिशा सन्मुख था सिंहासने बेसे , त्यारे देवता तत्काल जगवंत समान आकारवाला त्रण प्रतिबिंब करीने बाकीनी त्रण दिशाप्रोमां सिंहासन उपर स्थापन करे , ते अवसरे सर्व साधु श्रावकादिक नव्यजनो प्रदक्षिणापूर्वक तेमनी वंदना करे . आ वात तो आखा जैनमतमा प्रसिफ छे. वनी जगवंते दानादिक धर्मनी प्रवृत्ति देखामी छे, तेमज पोतानी स्थापनानुं पोतानी जेम वंदनीयपणुं देखामधुं छे, जो एम न होय तो श्री जिनाज्ञानुवर्ती साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविका वंदनादिक केम करे ? ए प्रकारे विवेकी पुरुषोए पोतानी मेले विचारी लेवं जोइए. श्रीमद् जगवती अंगने विषे वीशमा शतकना नवमा उद्देशमा विद्याचारण जंघाचारण मुनिने आश्रीने शाश्वती तथा अशाश्वती जिन प्रतिमाना वंदननो अधिकार स्पष्ट Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464