Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 431
________________ चतुथ प्रकाश. ३८ जिहरे तेणेव नवागच्छईश्ता जिणहरं अणुपविस्सइ बालोए पणामं करेइ लोमहत्ययं परामुसइ एवं जहा सूरिआने जिएपडिमा अच्छे तदेव जाणिव्वं जावध्रुवं महइ वामं जाणं अच्चे दाहिणां धरणीतसंसि निहद्दु तिखकुत्तो मुद्धानं धरणीतलंस निसेंइ ईसिं पच्चुन्नमइ करयलजावकद्दु एवं वयासी नमुत्थुणं अरिहंताणं जावसंपचाणं वंदइ नमसइ जिणहराज पडि निस्कमइति ॥ बली रायपसेणी सूत्रमां पण या प्रमाणे कहेलुं बे २" तरणं से सुरियाने देवे पोत्थयरयां गिएहत्तिश्त्ता पोत्थयरयणं वाएत्तिश्ता धम्मियं ववसायं परिगिएदत्तिश्ता पोत्ययरयणं परिनिख्कमंतिश्त्ता सिंहासणाओ अब्नुट्ठेश्श्त्ता ववसायसनान पुरित्थमलदारेणं परिनिख्कमइश्ता जेणेव दा पुरुकर णि तेणेव उवागचश्त्ता गंदा पुख्करणीए पुरत्थि - मणं दारेणं तिसोपा परिरुवेणं पच्चोदइश्ता तत्थ हत्थ - पादं परकाले शत्ता प्रायते चोख्के परमसुश्नूए एवं सेयं मह रययामहं विमलसलिलं पुष्षं मत्तगयमुहागिश्समाणं जिंगारं पगिएहंत्तिश्त्ता जाईं तत्थनप्पलाई जाव सयपत्तारं सहसपत्ताई ताई गिएहंत्तिश्त्ता दान पुरुकरणीय पचोरुदश्श्ता जेणे व सिद्धायत तेणेव पहारत्थगमणाए इत्यादि जाव बहु दिय देवे देवीदिय सद्धिं संपरिवुमे सव्वद्धीए जाव वाइयरवे जेणेव सिद्धायतणे तेणे व जवागल सिद्धायतणं पुरित्थिमलेणं २ सूर्याभदेवे देवलोकमां जिन प्रतिमानी केवा केवा द्रव्य भने भावमय प्रकारोवढे पूजा करी तेनो अधिकार छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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