Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 427
________________ BiMHIRANAS अथ चतुर्थ प्रकाश परमात्म स्वरूप. अनुक्रमे आवेझा आ चोथा परमात्म प्रकाशनो प्रारंन करवामां आनावे . प्रथम परमात्मताना वे प्रकार . १ जवस्थ परमात्मता अने All सिमस्थ परमात्मता. ते परमात्मतानी मानिने सूचवनारी बे आयाओ श्रा प्रमाणे - "पकश्रेण्यारूढः कृत्वा घनघातिकर्मणां नाशम् । आत्मा केवलनूत्या नवस्थपरमात्मतां नजते ॥ १॥ तदनुनवोपग्राहक-कर्मसमूहं समूलमुन्मूल्य । ऋजुगत्या लोकाग्रं प्राप्तोऽसौ सिधपरमात्मा" ॥२॥ पक श्रेणी उपर आरुढ थयेनो आत्मा ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय अने अंतराय-ए चार कर्म के जे आत्मगुणना घातक होवाथी पनघाती कहेवाय , तेनो नाश करी सोकालोकने प्रकाश करनार केवलझाननी संपत्ति प्राप्त करी ते वझे नवस्थ एवा परमात्मपणाने पामे . " ? से पड़ी ते आत्मा तत्कास कामे करीने एटले चौदमा गुणगणाना डेछा समयमां नवोपग्राही एटले वेदनीय, श्रायु, नाम अने गोत्र रुप चार कर्म ने भव पर्यंत स्थायी , ते कर्मना समूहने मूलमाथी उखेकी नांखी अजुगति एउसे समयांतर के प्रदेशांतरनो स्पर्श न करीने सोकाग्र-सिफि स्थानने प्राप्त करी सिफ परमात्मपणाने पामे . १ YE Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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