Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 407
________________ ३६५ तृतीय प्रकाश. चतारि पच्छा आढयं, सुचत्तारि आढयो दोणो” इत्यादि धान्यथी नरेखो अवांगुख करेलो हाथ 'अस्ती' कहेवाय डे-आगला सूत्र प्रमाणे तेनो अर्थ जाणवो; एटले बे मूंढा हाथनो एक पसी थाय, वे पसीनो एक सेतिका थाय, चार सेतिकानो एक कुल, चार कुलनो एक प्रस्थ, चार प्रस्थनो एक आढक अने चार आढकनो छोण थाय छे. आ प्रमाणे कहेता प्रमाणयी शुक्र तथा शोणित वगेरे, जे न्यूनाधिकपाणु थाय बे, ते वातादिकना दोषने लश्ने थाय . पुरुषना शरीरमां पांच अने स्त्रीना शरीमा उ कोग जे. पुरुषने वे कान, वे आंखो, बे नसकोरां, एक मुख, एक गुदा अने एक पुरुष चिह्न, ए नव घार प्रवाहने वहन करनारा . ए नव सहित बे स्तन वधवाथी स्त्रीने प्रवाहने वहन करनारा अगीयार घार . आ गणना मनुष्य गतिने आश्रीने जाणवी. . तिर्यंच गतिमां बकरा वगेरे बे स्तनवालाने अगीयार अने चार स्तन वाली गाय प्रमुखने तेर तथा मुक्करीने वगेरेने आठ स्तन गणतां सत्तर-आ प्रमाणे व्याघात विना जाणी लेवानुं जे. व्याघात होयतो एक स्तनवाळी अजाने दश, त्रणस्तनवाळी गायने बार,–एम समजवानुं . पुरुषना शरीरमा कुल पांचसो मांसनी पेशीओ , तेनाथी स्त्रीओने त्रीश अने नपुंसकने वीश ओपी छे. आ शरीर अनेक महा रोगानुं नत्पत्ति स्थान छे, तेने विषे संसारी जीवोना रोगोनी संख्या पांच करोफ, अमसठ लाख, नवाणुं हजार अने पांचसो चालीशनी जे. कयुं के, पंचेवयकोमी बखाअमससिहसनवनवई पंचसयाचुतसीई रोगाणहंतिसंखाजत्ति ॥ अर्थ उपर आवी गयो -आ प्रमाणे अस्थि आदिना समूहवाला अने अनेक प्रकारना व्याधिोथी व्याप्त एवा ए शरीरमां शुं शुचि जे? कांइपण बेज नहीं. ७ सातमी आश्रव नावना छे. आ संसारमा जीवो १ मिथ्यात्व, अ. विरति, ३ कषाय अने ४ योग रुप आश्रवे करी समय समय प्रत्ये शुनाशुन कर्मना For Private & Personal Use Only Jain Education Interational www.jainelibrary.org

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