Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 409
________________ तृतीय प्रकाश. उ नेदयी वार प्रकारनी थाय जे. ते जेद प्रथम यति धर्मना अधिकारमां कहेला छे तेथी आ प्रसंगे आपवामां आव्या नथी. आ बार प्रकारन। निर्जरा विरति परिणामवालाने होय जे; एटले विरतिपरिणामी कर्मक्षयने माटे पोतानी अभिलाषाथी सकाम निर्जरा करे जे. अने जे विरति परिणामथी रहित , अने ते शिवाय बाकीना मनुष्य प्राणीओ ने, तेमने अनिलाष रहित शीत, नष्ण, क्षुधा, तृपा आदि सहन करवाशी अकाम निजेरा थाय .-आव निर्जरानुं जे चितवन, ते निर्जरा नावना कहेवाय . तेने माटे आ प्रमाणे कहेळ . ___“कम्माण पुराणाणं निकंतणं निजरा वानसहा । विरयाण सा सकामा तहा अकामा अविरयाणं तु” ॥१॥ आ गाथानो अर्थ नपर श्रावी गयो बे. दशमी बोकस्वरूप नावना जे. आ लोकना मध्य भागमां चतुर्दश रज्जु प्रमाण लोक विद्यमान . कटी नपर राखेला छे बे हाथ जणे अने तिला प्रसारेला ने बे चरण जेणे एवा पुरुषना आकार जेवो आ लोक डे अथवा अधोमुख करेल मोटा शरावनी उपर रहेन जे लघु शराव, तेना संपुटना जेवी तेनी आकृति जे. कहेवानुं तात्पर्य ए जे के, सात रज्जुना विस्तारथी नीचे लोकना तबीयाथी चे थोडे थोएं संकोचता तीर्छा लोक एक रज्जु विस्तारवालो छे. ते पठी ऊर्ध्व नागे अनुक्रमे विस्तारने पामतो ब्रह्मदेवलोकने त्रीजे पाथडे पांच रज्जु विस्तारवाळो . ते पळी थोथोडे संदेपने जजतो सर्व उपरना लोकाग्र प्रदेशने प्रतरे एक रज्जु विस्तारवालो ने, ए रीते यथोक्त संस्थानवालो लोक . ते स्रोकने विषे धर्मास्तिकायादि उ अव्यो ने. १ स्वनावधी गतिपरिणत जीव अने पुद्गलोनो मत्स्य अने जवनी जेम जे उपष्टंनकारी संबंध ते धर्मास्तिकाय कहेवाय बे. २ वटेमागुने गायानी जेम तेनी स्थितिमां जे नपटनकारी, ते अधर्मास्तिकाय कहेवाय जे. ३ पूर्वोक्त बने अन्यो प्रदेशथी अने प्रमाणथी लोकाकाशतुल्य तेमज तेमने गति अने स्थितिमा प्रवर्ततां अवकाश आपवाथी जे अवगाहन धर्मवालो ने, ते Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464