Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 411
________________ तृतीय प्रकाश. ३६ए एक परमाणु आदिके करीने आकाशास्तिकायनो प्रदेश पूर्ण कहेवाय छे बे परमाएवादिके करी पूर्ण अने शतसहस्त्रादिके करीने पण पूर्ण बे, एम जणाय छे ! एम केम कहेवाय ? तेना उत्तरमां कहे छे के, ते परिणामना भेदथी कही शकाय जे. जेम ओरमानो आकाश एक दीवानी प्रजापटलथी पूराय बे, तेम वीजा दीवानो प्रकाश पण त्यां समाइ जाय जे, यावत् एकसो दीवापण तेमां समाइ जाय . तेमज औषध विशेषना एकगपणाथी एक पारो खेंचवामां सो सोनामोहर पेशी जाय ने पनी ते पारो अने कर्षीचूत औषधना सामर्थ्यथी पारानी कणी अने सुवर्णना सैकडो कर्ष पृथक् थप जाय , कारण के पुद्गलोना परिणामर्नु विचित्रपणुं छे. वनी लोकप्रकाश ग्रंथमां पण कर्तुं ने के औषधना सामर्थ्यथी पारानी एक कणीमां सुवर्णनी सो कणी नांखीए तोपण तोलमां कर्षथी अधिक न थाय, वळी औषधना सामर्थ्यथी ते बंने जुदा जुदा थइ जाय -सुवर्णना कर्षक सो अने पारानो एक कर्ष ए प्रमाणे थाय जे. अहीं वली ऊर्ध्व, अधो अने ती लोकनुं स्वरूप ग्रंथांतरथी जाणी लेबु-आ प्रमाणे लोकनुं स्वरूप चिंतव, ते लोक स्वनाव नावना कहेवाय छे, तेने माटे कयुं छे के. __ " अहमुहगुरुमबयठिय लहु मलयजुयनसंठिअंसोगं । धम्माइ पंच दव्वेहिं पूरिओं मणसि चिंतिजेति " ॥१॥ अर्थ. नीचे मुखघाळा मोटा सरावळांनी पेठे रहेला तथा नाना सरावळांना संपुटनी पेठे ( ऊर्ध्व भागमां ) रहेला तथा धर्मास्तिकायादि पांच अव्योवमे परिपूर्ण एवा आ लोकनुं मनने विष चितवन करवू. अगीआरमी बोधि उर्सन नावना बे. अनंतानंत काले पंचेंजियपाणुं 3बन छे तेमां पण मनुष्यजावादि सामग्री उर्बन डे, तेनो योग थतां पण प्राणी ओने परम विशुफि करनार सर्वझे दर्शावेल तत्त्वज्ञान रुपी बोधि ( सम्यक्त्व ) पाये करीने घएं उर्सन , जो ते एकवार पण प्राप्त थयेश होय तो प्राणीओने आटला समय सुधी आ संसारनुं पर्यटन होय नहीं." इत्यादि जे चितवन ते ४७ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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