Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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तृतीय प्रकाश.
३८१
मृ मार्दवता, ए सर्वने पामेला, प्रकृतिवमे अधिक, प्रकृतिवने विनीत, पराक्रमी, तेजस्वी वाणीनी सुंदरतावाला, यशस्वी, क्रोध, मान, माया ने लोअजितनारा, निशाने, इंडियाने अने परिषहोने जितनारा, जीवितनी आशा तथा मरणना जयथी रहित, उग्र तपस्वी, घोर तपस्वी, दीप्त तपस्वी, घोर ब्रह्मचर्यना धारक, बहुश्रुत, पांच सुमतिवडे सुमत, त्रण गुप्तिव गुप्त, निष्परिग्रही, निरहंकारी, कमझनी जेम निर्लेप, शखनी जेम निरंजन, आकाशनी जेम निराश्रय वायुनी जेम प्रतिबंध रहित, काचवानी जेम गुप्तेंधिय, पक्षीनी पेठे विप्रमुक्त, नारंडनी जेम प्रमाद रहित, पृथ्वीनी जेम सर्वने सहन करनारा, जिनवचननो उपदेश करवामां कुशल, एकांते परोपकार करवामां तत्पर, विशेष शुं कहेतुं ? पण 'कुत्रिकापण जेवा बे, एवा जिनेश्वरनी प्राज्ञाना आराधक, श्रमणस्त्री मुनिओ पोताना चरणवरे या पृथ्वीतळने पवित्र करता विचरे बे. प्रावा साधुजन प्रमुख उत्तम पुरुषोने प्राराधन करवा योग्य एवा सर्वोजता दर्शावे छे
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-तप
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तम धर्मनी
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जद चिंतामणि रयणं सुबदं न होइ तुच्छ विवाणं । गुण विश्ववज्जियाणं जियाण तद धम्मरयांमि " ॥१॥ " पशुपालनी पेठे तु वैजववाला ने थोमा पुण्यवाला जीवोने जेम चिंतामणि रत्न सुलन होय नहीं, तेम सम्यक्त्वादि गुण रूप वैजवथी रहित एवा जीवोने धर्म रत्न सुमन दोतुं नथी. तो जयदेव कुमारनी जेम जे अतुल गुणवान होय छेतेने मणिनी खाण रूप एवी मनुष्य गतिमां चिंतामणि तुख्य नम धर्मने पामे बे.
"
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१
पशुपाल ने जयदेवनुं दृष्टांत.
हस्तिनापुर नगरमां नागदेव नामे एक शेव रहे तो हतो. तेने वसुंधरा नामे एक स्त्रीना नदरथी जयदेव नामे एक पुत्र उत्पन्न थयो. ते जयदेवे बार वर्ष सुधी रत्ननी परीक्षानो प्रयास कर्यो हतो, आधी शास्त्र अनुसारे ते चिंतामणिने महान् प्रजाववालुं जाणी बाकीना रत्नोने पाषाण तुल्य समजतो हतो; आथी ते चिंतामणि रत्न उपार्जन करवा माटे याखा हस्तिनापुरमां दरेक एकाने घेर घेर फर्यो. तोपणा कोइ स्थले तेने चिंतामणि रत्न मल्युं नहीं. आर्थी शास्त्रमां कहेल देवताष्ठित दुकाननी जेवा - अर्थात् जेमनी पासेथी जे जोइए ते मळी शके तेवा,
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