Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 405
________________ तृतीय प्रकाश. सर्व पूर्व कोटी पर्यंतना पोताना आयुष्यनो छेवो वीशमो नाग अबीज होय अने पूर्व कोटी नपरनी स्थितिवालाने तो युगलिकपणे करी एकवार प्रसवधर्मीपणाने लइने अने निरंतर यौवनपणाने लश्ने आ नियम लागु पमतो नथी. आ शरीरे त्राण माता संबंधी अंगो मे १ मांस, २ रुधिर अने ३ मस्तक--नेजु. अने त्रण पिता संबंधी अंगो छ, १ अस्थि, ३ अस्थिमज्जा अने ३ केश, स्मश्रु, ( दाढी ) रोम तथा नख. आ शरीरना अवयवोनी संख्या ा प्रमाणे -तेमां प्रथम मनुष्य शरीर माटे कहे जे-मनुष्य शरीरमा पृष्ठ वंशनी ग्रंथिरुप अढार संधिओं मेंएटो वासामा अढार सांधाओं छे. तेओमां बार संधिोमांथी बार पांसळी. ओ नीकली वे पासा-परखाने वीटाइ वक्षस्थलनामध्य जागे रहेला हामने लागी पवाना आकारपणे परिणमें ; तथा ते पृष्टवंशना अवशेष रहेला छ संधियी पांसतीओ नीकळी वे पमखाने वीटाइ हृदयनी वे वाजु वदपंजरथीनीचे शिथिल अने कुखनी नपर परस्पर नहीं मोती रहे तेने कटाह कहे छे. वनी शरीरमां दरेक पांच पांच वामना वे आंतरमा छे तेमां एक स्थूल डे अने वीजें सूकम छे. तेमां जे स्यूल , तेनाथी वमीनीति परिणमे डे अने जे सूक्ष्म छे तेनाथी बघुनीति परिणमे छे. श्रा शरीरमां वे परखा जे. एक जमणो अने बीजो मावो. तेमा जे जमणं पर छे, ते जुःखकारी परिणामवाळु डे अने जे माबुं ने ते सुखकारी परिणामवालु . वली प्रा शरीरमां बीजी एकसो साठ पांस लोओ छे. ते अंगुलीआदि अस्थिना खमना मेलापना स्थानथी ओलखाय छे. बीजा एकसो सीतेर संखाणिकादिक मर्मस्थान छे. तेमां पुरुषना शरीरे नानिथी उत्पन्न एवी सातसो नसो , तेमां एकसो साठ नस ऊर्ध्वगामिनी जे, ते नानिथी आरंजीने मस्तक सुधी जाय , तेने रसहरणी कहे . तेना अनुपघात पणामां कान, चक्षु, घ्राण अने जिह्वानुं वन उल्लसे . अने जो तेनो नपघात थाय तो ते कान वगेरेनुं वन क्षीण थाय छे. ते शिवाय एकसो आठ वोजी नसो अधोगामिनी छे. ते पगना तत्रीआ मुधी रहेली छे, तेनो अनुपघात होय तो ते जंघाना बनने आपनारी छे अने तेनो उपधात थतां मस्तकनी वेदना अने अंधता वगेरे पीडा उत्पन्न करे . तेम वली एकसो साठ वीजी गुदाप्रविष्ट नसोडे, ते नसोना बबथी प्राणीओने वायु, मूत्र अने विष्टा प्रवर्ते जे. जो तेनो विघात थाय तो अर्श, For Private & Personal Use Only Jain Education Intemational www.jainelibrary.org

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