Book Title: Aptapariksha Author(s): Vidyanandacharya, Darbarilal Kothiya Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 9
________________ 'संकल्प' ‘णाणं पयासं' सम्यग्ज्ञान का प्रचार-प्रसार केवलज्ञान का बीज है। आज कमयुग में ज्ञान प्राप्ति की तो होड़ लगी है। पदवियाँ और उपाधियां जीवन का सर्वस्व बन चुकी हैं परन्तु सम्यग्ज्ञान की ओर मनुष्यों का लक्ष्य ही नहीं है। जीवन में मात्र ज्ञान नहीं, सम्यग्ज्ञान अपेक्षित है। आज तथाकथित अनेक विद्वान् अपनी मनगढन्त बातों की पुष्टि पूर्वाचार्यों की मोहर लगाकर कर रहे हैं । मटपटांग लेखनियाँ सत्य की श्रेणी में स्थापित की जा रही हैं। कारण पूर्वाचार्य प्रणीत ग्रन्थ आज सहज सुलभ नहीं हैं और उनके प्रकाशन व पठन-पाठन की जैसी और जितनी रुचि अपेक्षित है, वैसी और उतनी दिखाई नहीं देती। असत्य को हटाने के लिए पर्चेबाजी करने या विशाल सभाओं में प्रस्ताव पारित करने मात्र से कार्यसिद्धि होना अशक्य है । सत्साहित्य का जितना अधिक प्रकाशन व पठन-पाठन प्रारम्भ होगा, असत् का पलायन होगा। अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए आज सत्साहित्य के प्रचुर प्रकाशन की महती आवश्यकता हैयेनैते विदलन्ति वादि गिरयस्तुष्यन्ति वागीश्वराः भव्या येन विदन्ति निवृति पदं मुञ्चन्ति मोहं बुधाः । यद् बन्धुर्यन्मित्रं यदक्षयसुखस्याधारभूतं मतं, ___ तल्लोकत्रयशुद्धिदं जिनवचः पुष्याद् विवेकश्रियम् ।। सन् १९८४ से मेरे मस्तिष्क में यह योजना बन रही थी परन्तु तथ्य यह है कि “सङ्कल्प" के बिना सिद्धि नहीं मिलती। सन्मार्ग दिवाकर आचार्य १०८ श्री विमलसागर जी महाराज की हीरक-जयन्ती के मांगलिक अवसर पर मा जिनवाणी की सेवा का यह सङ्कल्प मैंने प० पू० गुरुदेव आचार्यश्री व उपाध्यायश्री के चरण-सान्निध्य में लिया। आचार्यश्री व उपाध्यायश्री का मुझे भरपुर आशीर्वाद प्राप्त हुआ । फलतः इस कार्य में काफी हद तक सफलता मिली है। इस महान् कार्य में विशेष सहयोगी पं० धर्मचन्द्र जी व प्रभा जी पाटनी रहे, इन्हें व प्रत्यक्ष-परोक्ष में कार्यरत सभी कार्यकर्ताओं के लिए मेरा बाशीर्वाद है। पूज्य गुरुदेव के पावन चरण-कमलों में सिद्ध-श्रुत-आचार्यभक्तिपूर्वक नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु । सोनागिर, ११-७-१० आयिका स्याद्वादमती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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