Book Title: Aptapariksha Author(s): Vidyanandacharya, Darbarilal Kothiya Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 8
________________ मोना 11 आशीर्वाद । विगत कम्पिय यों में नाम को मिल करने वाला एक गाग मिला ऐमा चार गा कि मत्स्पर असता का आगा आने am - एकान्तवार - नियाभास हुन पकाने लगा। आत के इस भौतिक भुग में अमर को अपना प्रभाव पैलाने को शाम ही कागा होता, कटु सत्य ? कारण रीत के मिरभा साकार जतिलाल से चले आपरे है । विगत ... नयों में एकान्तवार व काहीका eTM कर निश्यम जय की आयु में स्याद्वाद को पीछे धकेलने का प्रयास किग निशा साहित्य की प्रमाः - प्रचार विपा है 1 अयार्थ पुन्य कुन्य २० आइ लेकर अपनी मनाही है और शामो भाग भरल रिए अफा आर्य कर दिया है। जुमनों ने अपनी ममता पर एकान्त' में लोहलिया पर अपनी ओर से जनता को अपेक्षित सत्साहित्य सुलभ नही करना पाए । चार्य श्री विमल साJRVA महाराज का हीरक असली वर्ष हमारे लिए एक निधि अगर लेकर गया है। भाबिका स्याहादसती माताजी ने आचर्य +हमारे सानिमे एक, सवल्पलिया A पूज्य आगाई की हीरक जाजी के अवसर पर आर्म शाहिला का प्रमुर प्रकाश से ओर भर को मुला हो । फलत ७५ 3॥ गन्धों के पळाशन का विजय विमा 1मा है क्योति सत्यम् के तेजस्वी होने पर उपत्यकार स्वत: ही पलmal R डाला । साई गयो के प्रकाशन हेतु जिन प्राओं ने अपनी स्टोन ही ? एवं प्रत्या- परोक्ष रूप से जिस किसी में भी पूरा गदगुष्ठान में किसी पर का सापोज किमा! उन सबको हमारा आशीर्वाद है । पापाय भRAR ना. ११.७.१९१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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