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१४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
विभूषित कन्यालाभ ही इस कथा का उद्देश्य होता है। इस प्रकार संस्कृत में कथा गद्य और अन्य भाषाओं में पद्य में लिखी जाती है :
कन्यालाभफलां वा सम्यगविन्यस्य सकलशृङ्गारम् ।
इति संस्कृतेन कुर्यात् कथामगद्येन चान्येन ॥ उपर्युक्त श्लोक में 'कथामगद्येन चान्येन' पद ध्यान देने योग्य है । संस्कृत भाषा का स्पष्ट उल्लेख करके लक्षणकार ने 'अन्येन' पद से अपभ्रंश-प्राकृत की ओर इंगित किया है, यह अधिक संभव जान पड़ता है । यदि संस्कृताचार्यों के कथासम्बन्धी उक्त लक्षणों से निष्कर्ष निकाला जाए तो रुद्रट की परिभाषा का दष्टिकोण काफी उदार कहा जायगा। वैसे लक्षणग्रंथों में आचार्यों ने इन सब बातों का ध्यान न्यूनतम ही रखा है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि रुद्रट से कुछ पूर्व की कौतूहल कवि की 'लीलावती' नामक कथा मिली है जो ठोक रुद्रट के कथालक्षणों पर घटित होती है। इससे यह सिद्ध होता है कि रुद्रट ने कथा या महाकथा के लिए जो लक्षण बताये हैं वे उस समय की प्राकृत या अपभ्रंश की कथाओं को देख कर ही लिखे गये होंगे । हिन्दी प्रेमाख्यानकों में से एकाधिक प्रेमाख्यानकों पर रुद्रट को परिभाषारूपी कसोटी कसी जा सकती है। पूहकर कवि कृत 'रसरतन' में रुद्रट की परिभाषा का अनुसरण किया गया है। पुहकर ने आरम्भ में देव-वंदना की है। सूफी प्रेमाख्यानकों की तरह शाहेवक्त की स्तुति भी की है-आदि। ___ कथा और आख्यायिकों में कुछ सूक्ष्म भेदों के होते हुए भी इनके संदर्भ में कहा जा सकता है कि ये एक ही श्रेणी की रचनाएँ होती थीं। इनमें कोई मौलिक भेद प्रतीत नहीं होता। हितोपदेश, कथासरित्सागर, सिंहासनबत्तीसी, बैतालपचीसी, कादम्बरी, हर्षचरित, वासवदत्ता, दशकुमारचरित आदि कथा-आख्यायिकाओं को बहुत-कुछ प्रकृति एक-दूसरे से मिलती है । कथा-आख्यायिका के उपर्युक्त सभी मतों को एकत्र करके सर्वमान्य लक्षणों की रूपरेखा इस प्रकार बन सकती है :
१. कथा-आख्यायिका में रोमांचक तत्त्वों और साहसिक कार्यों जैसे युद्ध, बलपूर्वक विवाह, कन्याहरण, भयंकर यात्रा, मार्ग की दुरूह
१. रुद्रट, काव्यालंकार, १६. २०-२३. २. डा० शिवप्रसाद सिंह, रसरतन की भूमिका, पृ० ७८. .