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४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक थे। इन प्रेमाख्यानकों का उस समय वही मल्य था जो आज प्रेमविषयक उपन्यासों का। रसिकजन अथवा रोजी-रोटी की समस्या से मुक्त समय यापन करने वाले लोग तत्कालीन प्रेमाख्यानकों को रुचि से पढ़ते थे। जैन कवि बनारसीदास के आत्म-चरित 'अर्द्धकथानक' से यह बात प्रमाणित हो जाती है :
तब घर में बैठे रहैं, जाँहि न हाट बजार । ..
मधुमालति मिरगावती, पोथी दोइ उचारि ॥ ३३५ ॥ यों तो हिन्दी प्रेमाख्यानों का प्रारम्भ हिन्दी के रासो ग्रन्थों से ही मानना चाहिए । रासो ग्रन्थ परम्परा में पृथ्वीराजरासो एक विशाल ग्रन्थ के रूप में हमारे सामने आता है। इसमें अपभ्रंश की अनेक प्रकार की शैलियों का सम्मिश्रण मिलता है । वस्तुतः इस ग्रन्थ को भी प्रेमाख्यानकों की कोटि में ही समझना चाहिए। इस सन्दर्भ में पं० हजारीप्रसाद द्विवेदी का मत है : 'मूलत: ये सभी प्रेम-कथानक हैं। इनमें प्रेमकथानकों की सभी विशेषताएँ प्राप्त होती हैं। अन्तर इतना ही है कि यहाँ नायक की युद्ध-पटुता और शौर्य-प्रदर्शन मुख्य हो गया है और प्रेम-व्यापार गौण ।" इसी प्रकार वीसलदेवरासो भी एक प्रेम-कहानी ही है। यह मसणरास काव्य है जिसमें युद्ध का कहीं भी प्रसंग नहीं आता। खासतौर से यह विप्रलंभ शृंगार की महत्त्वपूर्ण कृति है। ,
___ इसी प्रकार मध्ययुगीन हिन्दी प्रेमाख्यानकों में चन्दायन, सखमसेन, पद्मावतीकथा, चंदकुंवरि री बात, सदयवत्स-सावलिंगा की कथा, मधुमालतीवार्ता (चतुर्भुजदास), छिताईवार्ता, मंझनकृत मधुमालती, मृगावती, उषाहरण, प्रेमविलास-प्रेमलता, रूपमंजरी, कृष्ण-रुक्मिणी, चित्ररेखा, चित्रावली, इन्द्रावती, रसरतन, नल-दमयन्तिकथा, ज्ञानदीप, माधवानल, कामकन्दला पर आधारित अनेक कृतियाँ ( कुशललाभ, गणपति, बोधा, आलम और दामोदर कृत ), रुक्मिणीपरिणय, सत्यवती की कथा, हंस-जवाहिर, अनुरागवाँसुरी, प्रेमदर्पण, भाषाप्रेमरस,
१. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य, वि० सं० २००९, पृ० २५९. २. बनारसीदास, अर्धकथानक, सं० नाथूराम प्रेमी, १९५७, पृ० ३८. ३. डा० सरला शुक्ल, हिन्दी-सूफ़ी कवि और काव्य, वि०सं० २०१३, पृ० ३७५. ४. डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य, पृ० २६१. '