Book Title: Anyokti Muktavali
Author(s): Hansvijay Gani, Kedarnath Pandit, Vasudev L Shastri
Publisher: Nirnaysagar Press
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काव्यमाला।
भूत्वा शान्तमना गृहाण कवलं नेहोऽधुना त्यज्यतां यन्मत्तास्त्वविवेकिनो विषयिणस्ते प्राप्नुवन्त्यापदम् ॥ ७२ ॥ न चरसि गजरानः पल्लवान्सल्लकीनां
न पिबसि गिरिकुण्डे नैर्झरं वारि हारि । विततदशनकोटौ दत्तहस्तावलम्बो
वहति विरहखिन्नः प्राणभारं करीन्द्रः ॥ ७३ ॥ न गृह्णाति प्रासं नवकमलकिञ्जल्किनि जले
न पङ्के वाह्लादं व्रजति बिसभङ्गार्धशबले । न चैवं प्रेमामिपि विषहते नान्यकरिणी
सरन्दावभ्रष्टां हृदयदयितां वारणपतिः ॥ ७४ ।। पादाघातविघूर्णिता वसुमती त्रासाकुलाः पक्षिणः
पकाङ्कानि सरांसि गण्डकषणक्षोदक्षताः शाखिनः । प्राप्येदं करिपोतकैर्विधिवशाच्छार्दूलशून्यं वनं
तत्तन्नाम कृतं विशृङ्खलतया वक्तुं न यत्पार्यते ॥ ७५ ॥ घासमासं गृहाण त्यज करिकलभ प्रीतिबन्धं करिण्याः
पाशग्रन्थित्रणानामविरलमधुना देहि पञ्चानुलेपम् । दूरीभूतास्तवैते शबरवरवधूविभ्रमोशान्तिदृष्टा रेवातीरोपकण्ठच्युतकुसुमरजोधूसरा विन्ध्यपादाः ॥ ७६ ॥ दानार्थिनो मधुकरा यदि कर्णतालै
•रीकृताः करिवरेण मदान्धबुद्ध्या । तस्यैव गण्डयुगमण्डनहानिरेषा
भृङ्गाः पुनर्विकचपद्मवने चरन्ति ॥ ७ ॥ करटिकरटे भ्रस्यद्दानप्रवाहपिपासया
परिसरसरभृङ्गश्रेणी करोति यदा रवम् । वदति शिरसः कम्पैर्नास्मान्निवारय वारण
वितर वितरामानं दानं चलाः किल संपदः ॥ ७८ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183