Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 11
________________ प्रातः स्मरणीय धन्ना अनगार त्रिलोक पूज्य परम आराध्य श्रमण भगवान महावीर प्रभु के सर्वत्यागी शिष्यों की उत्तमोत्तम साधना का वर्णन जब हम आगमों में देखते हैं, तो हमारा हृदय उन पवित्रात्माओं के चरणों में सहसा झुक जाता है। कैसी भव्य-साधना थी उनकी, कितना निर्दोष एवं शुद्ध संयम था उन महान् आत्माओं का, कैसी घोर तपस्या करते थे वे आत्मसाधक महान् संत। न किसी प्रकार का आडम्बर, न दिखावा, न प्रसिद्धि की चाह। एकमात्र आत्म-साधना "अप्पाणं भावेमाणे विहरामि" की दृढ़ प्रतिज्ञा का निष्ठापूर्वक पालन करते हुए तप-संयम में लीन रहने वाले पूज्य अनगार भगवंत। भगवान् महावीर के शिष्यों में वीतभय नरेश उदयन जैसे राजराजेश्वर थे, सुबाहुकुमार आदि राकुमार थे, अभयकुमार जैसे महामात्य थे और धन्ना जी जैसे कोट्याधिपति सेठ भी थे। महारानियाँ, राजकुमारियाँ, अतिमुक्त जैसे बालक राजकुमार भी थे। इतना ही नहीं, खंदक जी जैसे अकिंचन संन्यासी और अर्जुन जैसे तिरस्कृत हत्यारे तक भगवान् के शिष्य थे। किन्तु साधना में सभी उत्तम विशुद्ध और ध्येय को प्राप्त करने में सतत प्रयत्नशील थे। जब महाराजा श्रेणिक ने भगवान् से पूछा - "प्रभो! आपके चौदह हजार शिष्यरत्नों में अति दुष्कर साधना करने वाले संत कौन हैं?" - भगवान् ने कहा - "राजन्! इन्द्रभूति आदि चौदह हजार श्रमण निर्ग्रन्थों में धना अनगार महान् दुष्कर करणी करने वाले हैं।" ____उन धन्ना अनगार का चरित्र उनके गृहस्थ जीवन की उच्च स्थिति, उत्तम भोगज़ीवन और वैसा ही उत्तम - उससे भी उत्तमोत्तम साधनामय जीवन का विस्तृत परिचय इस सूत्र में मिलता है। सर्व प्रथम राजकुमार जाली आदि आदि तेईस अनगारों की साधना का वर्णन भी स्वाध्याय प्रेमियों के लिए प्रेरक है। इनके 'गुणरत्न सम्वत्सर' तप का वर्णन भगवती सूत्र के खंदक अनगार के प्रकरण से लेकर विवेचन में दिया है। भगवान् के अन्तेवासी निर्ग्रन्थों की उत्कट साधना का जब हम भाव पूर्वक स्वाध्याय करें, तो हमारा हृदय प्रशस्त भावों से सराबोर हो जाता है। उन महात्माओं का शरीर एवं आकृति हम नहीं देख सकते और इसका हमें प्रयोजन भी नहीं है। परन्तु हमारे ज्ञानचक्षु उन चारित्र सम्पन्न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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