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अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र
अनशन और देवोपपात
तए णं तस्स सुणक्खत्तस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स जहा खंदयस्स, बहुवासाओ परियाओ, गोयमपुच्छा, तहेव कहेइ, जाव सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे, तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं भंते! महाविदेहेवासे सिज्झिहि ।
॥ बीयं अज्झयणं समत्तं ॥
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कठिन शब्दार्थ - पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि - मध्य रात्रि के समय में, धम्मजागरियंधर्म जागरण करते हुए, बहुवासाओ परियाओ बहुत से वर्षों तक संयम पर्याय का, गोयमपृच्छा - गौतम स्वामी ने प्रश्न किया, सिज्झिहिड़ - सिद्ध होगा ।
भावार्थ - सुनक्षत्र अनगार को किसी समय, मध्य रात्रि के समय धर्म जागरणा करते हुए स्कंदक मुनि जैसा अनशन करने का विचार हुआ यावत् भगवान् की आज्ञा ले कर उसी प्रकार तप किया, बहुत वर्ष तक चारित्र पर्याय का पालन किया यावत् गौतम गणधर के प्रश्न और भगवान् का उत्तर कहना चाहिये यावत् सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए। उसकी तेतीस सागरोपम की स्थिति कही है। हे भगवन्! वह वहां से चव कर कहां उत्पन्न होगा - ऐसा गौतमस्वामी ने प्रश्न किया तब भगवान् ने कहा कि यावत् महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर संयम लेकर सिद्धि पद को प्राप्त करेगा ।
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विवेचन सुनक्षत्र अनगार का वर्णन भी धन्य अनगार के समान ही जानना चाहिये । अंतर इतना है कि धन्य अनगार ने नौ मास तक संयम पर्याय का पालन किया किंतु सुनक्षत्र अनगार की दीक्षा पर्याय बहुत वर्षों की थी ।
भगवती सूत्र में वर्णित स्कंदक अनगार के समान उन्होंने भी अंतिम समय में संलेखना - संथारा किया और काल करके सर्वार्थसिद्ध विमान में ३३ सागरोपम की स्थिति वाले देव बने ।. वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर दीक्षा अंगीकार कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे, शाश्वत मोक्ष स्थान को प्राप्त करेंगे।
॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त ॥
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