Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 83
________________ ६६ अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र ********************************* *************************** आदि नौ कुमारों का दीक्षा-महोत्सव थावच्चापुत्र के समान उनकी अपनी-अपनी माताओं ने किया जबकि दशवें वेहल्लकुमार का दीक्षा महोत्सव उनके पिता ने किया। धन्यकुमार की दीक्षा पर्याय नौ मास, वेहल्लकुमार की दीक्षा पर्याय छह मास तथा सुनक्षत्र आदि आठों अनगारों की दीक्षा पर्याय बहुत वर्षों की थी। सभी मुनियों ने एक मास की संलेखना की। सभी सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए तथा महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सभी कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त करेंगे। ___ उक्त कुमारों के जीवन वृत्तांत में मुख्य रूप से यही समानता है कि सभी का श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्मकथा सुनने को जाना, वहां वैराग्य की उत्पत्ति, दीक्षा ग्रहण, उच्च कोटि की तपस्या, शरीर का कृश होना, अर्द्ध रात्रि में धर्म जागरण करते हुए अनशन व्रत के भावों का उत्पन्न होना, अनशन कर सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न होना, महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर संयम अंगीकार करना और सिद्धि गति को प्राप्त करना आदि। इसी जीवन वृत्तांत को विस्तृत जानने के लिये भगवती सूत्र शतक २ वर्णित स्कंदक अनगार और ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र अध्ययन ५ में वर्णित थावच्चापुत्र की भलामण दी गयी है। अतः जिज्ञासुओं को दोनों स्थलों का स्वाध्याय करना चाहिये। इन अध्ययनों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति को अपना लक्ष्य स्थिर कर तदनुसार सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिये और दृढ़ संकल्प कर लेना चाहिये कि उस लक्ष्य की प्राप्ति में चाहे कैसी ही बाधा क्यों न आये, अपने प्रयत्नों में तनिक भी शिथिलता नहीं आनी चाहिये। जब तक व्यक्ति इतना दृढ़ संकल्प नहीं करता है तब तक उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती है किंतु जो अपने ध्येय प्राप्ति के लिये एकाग्रचित्त से गंभीरता पूर्वक प्रयत्न करता है वह अवश्य और शीघ्र ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। ____ धन्य आदि कुमारों ने एक मात्र मोक्ष लक्ष्य से तपाराधना करते हुए संयम पालन किया, शरीर की तनिक भी परवाह नहीं करते हुए आत्मसाधना में लीन रहे तो अपने लक्ष्य की सिद्धि कर ली। उपसंहार एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थयरेणं सयंसंबुद्धेणं लोगणाहेणं लोगप्पदीवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं सरणद एणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं जिणेणं जावएणं बुद्धणं बोहएणं मुक्केणं मोयगेणं तिण्णेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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