Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 85
________________ ६८ . . अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र पुनः संसार में न आना पड़े, ऐसी सिद्धि गति को प्राप्त हैं, उन भगवान् ने अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र के तीसरे वर्ग का यह अर्थ कहा है। ___ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र उपसंहार रूप है। इस सूत्र में उपसंहार करते हुए सुधर्मा स्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी के 'नमोत्थुणं' में दर्शित सभी गुणों का वर्णन किया है। जब कोई साधक सर्वज्ञ सर्वदर्शी हो जाता है तो वह अनंत और अनुपम गुणों का धारक बन जाता है। उसके गुणों का अनुकरण करने वाला भी एक दिन उसी रूप हो सकता है अतः प्रत्येक व्यक्ति को उनका अनुकरण अवश्य करना चाहिये। यही कारण है कि सुधर्मा स्वामी ने भव्य प्राणियों के हित के लिए भगवान् के विशिष्ट गुणों का यहां दिग्दर्शन कराया है जिससे लोग भगवान् के गुणों का स्मरण करते हुए उनकी आज्ञा में लीन हो जायं और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़े। ... इस सूत्र का उपसंहार करते हुए सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे. जम्बू! आदिकर यावत् मोक्ष को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक सूत्र के तृतीय वर्ग का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। __|| तीसरा वर्ग समाप्त॥ || अनुत्तरोपपातिकदशा नामक नवमां अंग समाप्त॥ इस सूत्र की समाप्ति पर कुछ प्रतियों में निम्नलिखित पाठ मिलता है - अणुत्तरोववाइयदसाणं एगो सुयखंधो, तिण्णि वग्गा, तिसु चेव दिवसेसु उद्दिसिजंति तत्थ पढमे वग्गे दस उद्देसगा, बिइए वग्गे तेरस उद्देसगा, तइए वग्गे दस उद्देसगा सेसं जहा णायाधम्मकहाणं तहा णेयव्वं ॥ ७॥ .. ॥ अणुत्तरोववाइयदसाओ समत्ताओ॥ कठिन शब्दार्थ - सुयखंधो - श्रुतस्कन्ध, वग्गा - वर्ग, दिवसेसु - दिनों मे, णेयव्वं जानना चाहिये। __भावार्थ - अनुत्तरोपपातिकदशा सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध और तीन वर्ग हैं जो तीन दिनों में पढ़े जाते हैं। उसके प्रथम वर्ग मे दस उद्देशक, दूसरे वर्ग मे तेरह उद्देशक और तीसरे वर्ग के दस उद्देशक हैं। शेष सारा वर्णन ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिये। || अनुत्तरोपपातिकदशा सूत्र समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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