Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 82
________________ शेष अध्ययन एवं सुणक्खत्तगमेणं सेसा वि अट्ठ (अज्झयणा) भाणियव्वा। णवरं आणुपुव्वीए दोण्णि रायगिहे, दोण्णि साकेए, दोण्णि वाणियग्गामे, णवमो हत्थिणापुरे, दसमो रायगिहे। णवण्हं भद्दाओ जणणीओ, णवण्ह वि बत्तीसओ दाओ णवण्हं णिक्खमणं थावच्चापुत्तस्स सरिसं वेहल्लस्स पिया करेइ, णव मास धण्णे छम्मासा वेहल्लए सेसाणं बहू वासा, मासं संलेहणा, सव्वट्ठसिद्धे महाविदेहे सिज्मणा। कठिन शब्दार्थ - सुणक्खत्तगमेणं - सुनक्षत्र के आलापक-आख्यान के समान, सेसाशेष, अट्ठ - आठ, अवि - भी, भाणियव्वा - कहना चाहिये, णवरं - विशेषता है कि, आणुपुव्वीए - अनुक्रम से, दोण्णि - दो, जणणीओ - माताएं, णिक्खमणं - निष्क्रमण, सरिसं - सद्दश, पिया - पिता, सिज्झणा - सिद्धि गति प्राप्त करेंगे। ' भावार्थ - इस प्रकार सुनक्षत्र के समान शेष आठ अध्ययन भी कहने चाहिए। विशेषता इतनी है कि - अनुक्रम से दो (तीसरा और चौथा) राजगृह में, इनके बाद के दो (पांचवां छठा) साकेत में, इनके बाद के दो (सातवां आठवां) वाणिज्यग्राम में उत्पन्न हुए। नौवां हस्तिनापुर और दसवां राजगृह नगर में उत्पन्न हुआ। नौ ही की माता का नाम भद्रा था। नौ ही का विवाह ३२-३२ कन्याओं के साथ हुआ। बत्तीस भवन आदि दायजा मिला। नौ ही का दीक्षा-महोत्सव थावच्चापुत्र जैसा जानना चाहिये। दसवें वेहल्लकुमार का दीक्षा महोत्सव उसके पिता ने किया था। धन्य अनगार ने नौ मास का चारित्र पाला। वेहल्लकुमार की दीक्षा पर्याय छह मास, शेष आठ ने बहुत वर्षों तक चारित्र पाला। दसों ने एक मास का अनशन किया। सभी सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए और महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि-गति को प्राप्त करेंगे। . विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में शेष आठ अध्ययनों का वर्णन किया गया है। - सुनक्षत्र के समान ही शेष आठों ही कुमारों का वर्णन समझ लेना चाहिये। विशेषता यही है कि इनमें क्रमशः दो - ऋषिदास और पेल्लक राजगृह नगर में, दो - रामपुत्र और चन्द्रिक - अयोध्या में, दो - पृष्ठमातृक और पेढालपुत्र - वाणिज्यग्राम में, नववां पोट्टिल हस्तिनापुर में तथा दशवां वेहल्लकुमार राजगृह नगर में उत्पन्न हुआ। धन्यकुमार आदि नौ कुमारों की भद्रा नामक माताएं थी। प्रत्येक की भद्रा नामक भिन्न भिन्न माताएं थी न कि एक ही। धन्यकुमार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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