Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 37
________________ बिडओ वग्गो जम्बू स्वामी की जिज्ञासा (२) प्रथम वर्ग में जालिकुमार आदि दश अध्ययनों का वर्णन करने के पश्चात् सूत्रकार इस द्वितीय वर्ग में तेरह अध्ययनों का वर्णन करते हैं जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है - - जड़ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमट्टे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ? कहा है। - कठिन शब्दार्थ - जड़ - यदि, अयमट्ठे - यह अर्थ, पण्णत्ते भावार्थ - आर्य जम्बूस्वामी, श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं कि हे भगवन् ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग का पूर्वोक्त अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन्! अनुत्तरोपपातिक दशा के द्वितीय वर्ग का श्रमण भगवान् यावत् मोक्ष प्राप्त श्री महावीर स्वामी ने क्या अर्थ कहा है? द्वितीय वर्ग सुधर्मा स्वामी का समाधान एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा - दीहसेणे महासेणे लट्ठदंते य गूढदंते य । सुद्धदंते हल्ले दुमे दुमसेणे महादुमसेणे य आहिए ॥ १ ॥ सीहे य सीहसेणे य महासीहसेणे य आहिए । पुण्णसेणे य बोद्धव्वेतेरसमे होइ अज्झयणे ॥ २ ॥ कठिन शब्दार्थ - तेरस - तेरह, अज्झयणा है, बोद्धव्वे - जानना चाहिये, होइ - होते हैं। Jain Education International - - अध्ययन, आहिए - कथन किया गया For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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