Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ ५३ तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन - भगवान् का समाधान WARN NNERNMEN ********************* में, कयरे - कौनसा, अणगारे - अनगार, महादुक्करकारए - अति दुष्कर क्रिया करने वाला, महाणिजरतराए - महा कर्मों की निर्जरा करने वाला। भावार्थ - तब राजा श्रेणिक ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से धर्मोपदेश सुन कर और हृदय में धारण कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन नमस्कार किया। वंदन नमस्कार करके पूछा कि - 'हे भगवन्! इन्द्रभूति आदि आपके चौदह हजार साधुओं में से महादुष्कर क्रिया करने वाले और महा निर्जरा करने वाले कौन अनगार हैं?' भगवान् का समाधान एवं खलु सेणिया! इमेसिं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव। ____भावार्थ - भगवान् ने कहा - 'हे श्रेणिक! इन इन्द्रभूति आदि चौदह हजार साधुओं में धन्य अनगार महादुष्कर क्रिया और महानिर्जरा करने वाले हैं।' से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ इमेसिं जाव साहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिजरतराए चेव? भावार्थ - हे भगवन्! आपके ऐसा कहने का क्या कारण है कि इन यावत् चौदह हजार अनगारों में धन्य अनगार महादुष्कर क्रिया और महानिर्जरा करने वाले हैं? ... एवं खलु सेणिया! तेणं कालेणं तेण समएणं काकंदी णामं णयरी होत्था उप्पिं पासायवडिंसए विहरइ। तए णं अहं अण्णया कयाइ पुव्वाणुपुव्वीए चरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे जेणेव काकंदी णयरी जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागए अहापडिरूवं उग्गहं उगिण्हित्ता संजमेणं तवसा जाव विहरामि। परिसा णिग्गया, तहेव जाव पव्वइए जाव बिलमिव जाव आहारेइ। धण्णस्स णं अणगारस्स पायाणं सरीरवण्णओ सव्वो जाव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठइ। से तेणटेणं सेणिया! एवं वुच्चइ - इमेसिं चउद्दसण्हं समण साहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए महाणिजरतराए चेव। भावार्थ - हे श्रेणिक! उस काल उस समय में काकंदी नाम की नगरी थी उसमें यावत् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86