Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 74
________________ - प्रथम अध्ययन - धन्य अनगार का संथारा ५७ लिया है।' इस प्रकार स्तुति तथा वन्दन नमस्कार कर राजा श्रेणिक भगवान् के पास आकर प्रसन्न मन से बोले - 'हे भगवन्! जैसा आपने कहा है उसी रूप में मैंने धन्य अनगार को देखा है।' इस प्रकार धन्य अनगार की प्रशंसा करते हुए राजा श्रेणिक भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणा पूर्वक वंदन नमस्कार कर स्वस्थान लौट गये। धन्य अनगार का संथारा .. तए. णं तस्स धण्णस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपजित्था-एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं जहा खंदओ तहेव चिंता, आपुच्छणं थेरेहिं सद्धिं विउलं दुरूहंति, मासिया संलेहणा णवमास परियाओ जाव कालमासे कालं किच्चा उड्डे चंदिम जाव णव य गेविज विमाणपत्थडे उड़े दूरं वीईवइत्ता सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे। थेरा तहेव ओयरंति जाव इमे से आयारभंडए। . कठिन शब्दार्थ - पुव्वरत्तावरत्तकाले - मध्य रात्रि के समय, धम्मजागरियं - धर्म जागरण करते हुए, इमेयारूवे - इस प्रकार के, अज्झथिए - आध्यात्मिक विचार, ओरालेणंउदार तप से, आपुच्छणं - पूछ कर, थेरेहिं - स्थविरों के, सद्धिं - साथ, विउले - विपुल पर्वत पर, दुरूहंति - चढ़ गया, मासिया - मासिकी, संलेहणा - संलेखना की, परियाओ - पर्याय का पालन किया, कालमासे - मृत्यु के समय, कालं किच्चा - काल के द्वारा, उद्धं - ऊंचे, चंदिम - चन्द्रमा से, णव - नव, गेविजविमाणपत्थडे - ग्रैवेयक विमानों के प्रस्तर से, वीइवईत्ता - व्यतिक्रम करके, सव्वट्ठसिद्धे विमाणे - सर्वार्थसिद्ध विमान में, देवत्ताए - देव रूप से, उववण्णे - उत्पन्न हुए, ओयरंति - उतरते हैं, आयारभंडए - आचार भण्डोपकरणवस्त्र पात्र आदि उपकरण। भावार्थ - तत्पश्चात् धन्य अनगार को अन्यदा मध्य रात्रि के समय धर्मजागरणा जागते हुए इस प्रकार का अध्यवसाय, चिंतन और मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि - "मैं निश्चय ही इस प्रधान तप से' इत्यादि स्कंदक मुनि जैसा विचार हुआ। तत्पश्चात् प्रातःकाल होने पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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