Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 78
________________ सूनक्षत्रकुमार नामक द्वितीय अध्ययन सुनक्षत्र कुमार का परिचय तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन में धन्य अनमार के तपोमय आदर्श जीवन का वर्णन करने के बाद अब सूत्रकार द्वितीय अध्ययन का वर्णन करते हैं जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है - जइ णं भंते! उक्खेवओ। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदीए णयरीए भद्दा गामं सत्यवाही परिवसइ अहा। तीसे गं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुणक्खत्ते णामं दारए होत्था अहीण जाव सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धण्णो तहा बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिं पासायबडिंसए विहरइ। ___कठिन शब्दार्थ - उक्खेवओ - उत्क्षेप-आक्षेप से जान लेना चाहिये, परिवसइ - रहती थी, अड्डा - सर्व ऋद्धि सम्पन्न, पंचधाइपरिस्खित्ते - पांच धायों के लालन पालन में, पासायवडिंसए - सर्वश्रेष्ठ प्रासादों में। भावार्थ - हे भगवन्! प्रथम अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ कहा है तो द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा है इत्यादि उत्क्षेप-प्रस्तावना जानना चाहिये। सुधर्मा स्वामी कहते हैं - हे जंबू! उस काल और उस समय में काकंदी नगरी में भद्रा नाम की सार्थवाही रहती थी। वह समृद्धिशाली थी। उस भद्रा सार्थवाही का पुत्र सुनक्षत्र नामक कुमार था। उसके अंगोपांग हीनता रहित - परिपूर्ण थे यावत् वह सुरूपवान् था। पांच धाइयों द्वारा उसका लालन पालन किया जाता था। वह जब युवक हुआ तब धन्य कुमार के समान बत्तीस कन्याओं के साथ उसका विवाह किया और बत्तीस भवन आदि दायजा दिया यावत् वह अपनी पत्नियों के साथ यावत् सर्वश्रेष्ठ प्रासादों में सुखों का अनुभव करता हुआ विचरता था। विवेचन - इस सूत्र में प्रयुक्त उक्खेवओ - उत्क्षेपः शब्द से निम्न पाठ का ग्रहण होता है__ "जड णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं णवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमहे पण्णत्ते णवमस्स णं भंते! अंगरस अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स बिइयस्स अज्झयणस्स के अहे पण्णत्ते?" अर्थात् - हे भगवन्! यदि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नवमें अंग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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