Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन - श्रेणिक द्वारा वंदन और गुणानुवाद * ** * **************************************************** श्वेणिक द्वारा वंदन और गुणानुवाद तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमढें सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव धण्णे अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धण्णं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-धण्णे सि णं तुमं देवाणुप्पिया! सुपुण्णे सुकयत्थे, कयलक्खणे, सुलद्धे णं देवाणुप्पिया! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले त्तिक? वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए। ___ कठिन शब्दार्थ - हट्ट तुट्ट - हृष्ट और तुष्ट होकर, धण्णेसि - धन्य हो, सुपुण्णे - अच्छे पुण्य हैं, सुकयत्थे - कृतार्थ हुए, कयलक्खणे - शुभ लक्षणों से युक्त, माणुसए - मानुष, जम्मजीवियफले - जन्म के जीवन का फल, सुलद्धे - अच्छी तरह प्राप्त कर लिया है, जामेव - जिस, दिसं - दिशा से, पाउन्भूए - प्रकट हुआ, तामेव - उसी, पडिगए - . वापिस चला गया। भावार्थ - तब श्रेणिक राजा ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से 'यह वृत्तान्त सुन कर और मन में धारण कर हृष्ट तुष्ट होकर भगवान् महावीर स्वामी को तीन बार दक्षिण ओर से आरंभ कर प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके वन्दन नमस्कार किया। वंदन नमस्कार करके धन्य अनगार के समीप आया। धन्य अनगार को तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा करके वन्दन नमस्कार किया और इस प्रकार बोला - 'हे देवानुप्रिय! आप धन्य हैं, अच्छे पुण्यशाली हैं, अच्छे लक्षण वाले हैं। हे देवानुप्रिय! आपने मनुष्य जन्म और जीवन का फल भलीभांति प्राप्त किया है।' इस प्रकार कह कर श्रेणिक राजा ने धन्य अनगार को वंदन नमस्कार किया। वंदन नमस्कार करके श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आया और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन बार वन्दन नमस्कार किया तथा जिस दिशा से आया था, उधर ही लौट गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86