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अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र ****
*************** ********************************** से होने के कारण रोचक है। तप के कारण धन्य का शरीर यद्यपि सूख कर कांटा हो गया था किंतु उनकी आत्मिक शक्ति दिन-दिन बढ़ती चली जा रही थी। अब सूत्रकार धन्य अनगार के शेष अवयवों का वर्णन करते हैं -
- धण्णस्स णं अणगारस्स बाहाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था से जहाणामए समिसंगलियाइ वा वाहायासंगलियाइ वा अगत्थियसंगलियाइ वा, . एवामेव बाहाणं जाव सोणियत्ताए।
कठिन शब्दार्थ - बाहाणं - बाहुओं (भुजाओं) का, समिसंगलियाइ - शमी वृक्ष की फली, वाहायासंगलियाइ - बाहाया-एक वृक्ष विशेष की फली, अगत्थियसंगलियाइ - अगस्तिक नामक वृक्ष की फली।
भावार्थ - धन्य अनगार के बाहुओं का तप रूप लावण्य ऐसा हो गया था जैसे शमी (खेजड़ी) वृक्ष की फली बाहाय (अमलतास करमाला) वृक्ष की फली और अगथिया वृक्ष की फली हो इस प्रकार धन्य अनगार की भुजाएं पतली लम्बी, शुष्क और खून-मांस से रहित हो गई थी।
धण्णस्स णं अणगारस्स हत्थाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए सुक्कछगणियाइ वा वडपत्तेइ वा पलासपत्तेइ वा एवामेव हत्थाणं जाव सोणियत्ताए।
कठिन शब्दार्थ - हत्थाणं - हाथों की, सुक्कछगणियाइ - सूखा गोबर (कंडा), वडपत्तेइ - वट वृक्ष का सूखा हुआ पत्ता, पलासपत्तेइ - पलाश (खांखरे) का सूखा पत्ता।
भावार्थ - धन्य अनगार के हाथ (पंजा) का तप रूप लावण्य इस प्रकार का हो गया था जैसे सूखा गोबर (कंडा) वट (वड) का पत्ता और खांखरे का पत्ता हो। इस प्रकार धन्य अनगार के हाथ मांस और रक्त से रहित हो गये थे।
धण्णस्स णं अणगारस्स हत्थंगुलियाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए कलायसंगलियाइ वा मुग्गसंगलियाइ वा माससंगलियाइ वा तरुणिया छिण्णा आयवे दिण्णा सुक्का समाणी, एवामेव हत्थंगुलियाणं जाव सोणियत्ताए।
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