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तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन - धन्य अनगार की पांसलियाँ.... * *** ****************############Here
भावार्थ - धन्य अनगार की पांसलियां रूपी कटक का तप रूप लावण्य इस प्रकार का हो गया था जैसे स्थासकावली, पाणावली और मुंडावली हो। इस प्रकार उनकी पंसुलियां रुधिर मांस से रहित हो गई थी।
धण्णस्स णं अणगारस्स पिट्टिकरंडयाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए कण्णावलीइ वा गोलावलीइ वा वयावलीइ वा एवामेव धण्णस्स अणगारस्स पिट्टिकरंडयाओ जाव सोणियत्ताए। ___ कठिन शब्दार्थ - पिढिकरंडयाणं - पीठ की हड्डी के उन्नत प्रदेशों की, कण्णावलीइकर्णावली-कर्ण अर्थात् मुकुट आदि के कंगूरों की आवली अर्थात् श्रेणी कान के भूषणों की पंक्ति, गोलावलीइ - गोलक-वर्तुलाकार पाषाण विशेषों की पंक्ति, वट्टयावलीइ - वंतकावलीवर्तक-लाख आदि के बने हुए बच्चों के खिलौनों की पंक्ति।
__ भावार्थ - धन्य अनगार की पीठ-करंडक का तप रूप लावण्य इस प्रकार हो गया जैसेकर्णावली, गोलावली, वर्तकावली हो इसी प्रकार धन्य अनगार के पीठ-करंडक मांस रुधिर से रहित शुष्क हो गये थे।
धण्णस्स णं अणगारस्स उरकडयस्स अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए चित्तकट्टरेइ वा वियणपत्तेइ वा तालियंटपत्तेइ वा एवामेव उरकडयस्स जाव सोणियत्ताए। .. कठिन शब्दार्थ - उरकडयस्स - उर (वक्ष स्थल) कटक की, चित्तकट्टरेइ - गौ के । चरने के कुण्ड का अधोभाग, वियणपत्तेइ - बांस आदि के पत्तों का पंखा, तालियंटपत्तेइ - ताड के पत्तों का पंखा। ____ भावार्थ - धन्य अनगार की छाती रूपी कटक का तप रूप लावण्य इस प्रकार हो गया था जैसे चित्त नामक तृण से बनाई गई चटाई, वायु के लिये बांस के सीको से बनाया हुआ पंखा, तालवृक्ष के पत्र का पंखा, इनके समान धन्य अनगार की छाती (वक्ष स्थल) सूख कर मांस और रुधिर से रहित हो गई थी।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में क्रमशः धन्य अनगार के कटि, उदर, पांसुलिका, पृष्ठप्रदेश और छाती (वक्ष स्थल) का उपमा द्वारा वर्णन किया गया है। तपस्या के कारण शरीर के ये सभी अवयव शुष्क एवं मांस-रुधिर से रहित हो गये थे। इन सब अवयवों का वर्णन उपमालंकार
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