Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 63
________________ अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र भावार्थ - धन्य अनगार की गर्दन का तप रूप लावण्य इस प्रकार का हो गया था जैसे घड़े की ग्रीवा हो, कमंडलु की ग्रीवा हो अथवा किसी ऊंचे मुख वाले पात्र की ग्रीवा हो। इस प्रकार धन्य अनगार की गर्दन कृश, शुष्क एवं मांस तथा रुधिर से रहित हो गई थी। धण्णस्स णं अणगारस्स हणुयाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए लाउयफलेइ वा हकुवफलेइ अंबगट्ठियाइ वा, एवामेव हणुयाए जाव सोणियत्ताए। कठिन शब्दार्थ - हणुयाए - चिबुक-ठोडी-दाढी, लाउयफलेइ - तुम्बे का फल, हकुवफलेइ - हकुव वनस्पति का फल, अंब गट्ठियाइ - आम की गुठली। भावार्थ - धन्य अनगार की चिबुक (ठोडी-दाढी) का तप रूप लावण्य इस प्रकार का हो गया था जैसे तुम्बे का फल हो, हकुव वनस्पति का फल हो अथवा आम की गुठली हो। इस प्रकार धन्य अनगार की दाढी शुष्क एवं मांस रुधिर से रहित हो गई थी। ___धण्णस्स णं अणगारस्स ओट्ठाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए सुक्कजलोयाइ वा सिलेसगुलियाइ वा, अलत्तगगुलियाइ वा, एवामेव ओट्ठाणं जाव सोणियत्ताए। ___ कठिन शब्दार्थ - ओट्ठाणं - हौठों (ओठों) का, सुक्कजलोयाइ - सूखी हुई जौंक, सिलेसगुलियाइ - श्लेष्म की गुटिका, अलत्तगगुलियाइ - अलक्तक-लाख की गोली, मेहंदी की गुटिका। - भावार्थ - धन्य अनगार के ओंठो (होठों) का तप रूप लावण्य ऐसा हो गया था जैसे सूखी हुई जौक हो, श्लेष्म की गोली हो अथवा सूखी हुई मेहंदी की गुटिका (लाख की गोली) हो। इसी प्रकार धन्य अनगार के होंठ सूख कर कांति रहित तथा मांस रुधिर से रहित हो गये थे। धण्णस्स णं अणगारस्स जिब्भाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए वडपत्ते इवा, पलासपत्ते इ वा उंबरपत्तेइ वा सागपत्ते इ वा एवामेव जिन्माए जाव सोणियत्ताए। कठिन शब्दार्थ - जिन्माए - जिह्वा-जीभ का, वडपत्तेइ- वट वृक्ष का पत्ता, पलासपत्तेइपलाश वृक्ष (खांखरे) का पत्ता, उंबरपत्तेई - उम्बर वृक्ष का पत्ता, साकपत्तेई - शाक का पत्ता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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