Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 44
________________ * * * * * * * » » »« »je je »je je je aj तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन Jain Education International धन्यकुमार का जन्म *j*je sjajajaj उपरोक्त आगम पाठ से उस समय की स्त्री जाति की उन्नत अवस्था का पता लगता है। उस समय स्त्रियां पुरुषों के ऊपर ही निर्भर नहीं रहती थीं किंतु स्वयं पुरुषों के बराबर व्यापार आदि बड़े-बड़े कार्य करती थीं। उन्हें व्यापार आदि के विषय में सब तरह का पूरा ज्ञान होता था । देशान्तरों में भी उनका व्यापार वाणिज्य आदि कार्य चलता था। यहां भद्रा सार्थवाही नाम की स्त्री सारा कार्य स्वयं करती थी और इसकी विशेषता यह है कि अपनी जाति और बराबरी के लोगों में वह किसी से किसी प्रकार भी कम नहीं थी । यह बात उस समय उन्नति के शिखर पर पहुँची हुई स्त्री समाज का चित्र हमारी आँखों के सामने खींचती है। इस प्रकार जैनागमों के स्वाध्याय से यह निश्चय होता है कि उस समय स्त्रियों के अधिकार पुरुषों के अधिकारों से किसी अंश में भी कम नहीं थे। उस समय की स्त्रियाँ वास्तव में अर्द्धाङ्गिनियाँ थीं। उन्होंने पुरुषों के समान ही मोक्ष भी प्राप्त किया है अतः स्त्रियों को क्षुद्र मानने वालों को भ्रान्ति निवारण के लिये एक बार जैन शास्त्रों का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये । धन्यकुमार का जन्म तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते धण्णे णामं दारए होत्था अहीण जाव सुरूवे, पंचधाईपरिग्गहिए, तं जहा खीरधाईए जहा महब्बले, जाव बावत्तरिं कलाओ अहीए जाव अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था । - कठिन शब्दार्थ - दारए - दारक - उसी के गर्भ से उत्पन्न बालक (पुत्र), अहीण - अहीनकिसी भी इन्द्रिय से हीन नहीं - परिपूर्ण इन्द्रियों वाला, सुरूवे सुरूप, पंचधाईपरिग्गहिए - पांच धात्रियों (धाइयों) से परिगृहीत, खीरधाई - दूध पिलाने वाली धात्री, बावत्तरिं कलाओ- बहत्तर कलाएं, अहीए - अध्ययन की, अलं भोगसमत्थे - सभी प्रकार के भोगों को भोगने में समर्थ । भावार्थ उस भद्रा सार्थवाही का पुत्र धन्य नामक कुमार था। वह परिपूर्ण अवयव वाला यावत् स्वरूपवान् था। पांच धायों द्वारा उसका लालन-पालन किया जाता था। वे पांच धाय इस प्रकार हैं १. दूध पिलाने वाली २. स्नान कराने वाली ३. वस्त्राभूषण पहनाने वाली ४. खेलाने वाली घूमाने फिराने वाली और ५. गोद में लेने वाली इत्यादि भगवती सूत्र शतक ११ उद्देशक ११ के महाबल के वर्णन के अनुसार जानना चाहिये यावत् वह धन्यकुमार बहत्तर - पढ़ा और भोग भोगने में समर्थ हुआ । २७ - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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