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तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन प्रथम पारणा
प्रथम पारणा
तए णं से धणे अणगारे पढमछट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ जाव जेणेव काकंदी णयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता काकंदीए णयरीए उच्चणीय जाव अडमाणे आयंबिलं जाव णावकंख इ ।
कठिन शब्दार्थ - पढमछट्ठक्खमणपारणगंसि प्रथम बेले के पारणे के दिन, पढमाए पोरिसीए - प्रथम पौरुषी में, सज्झायं स्वाध्याय, उच्चणीय - ऊंच नीच और मध्यम कुलों में, अडमाणे - भिक्षा के लिये फिरता हुआ ।
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भावार्थ - वह धन्य अनगार प्रथम बेले के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय करते हैं, द्वितीय पौरुषी में ध्यान करते हैं, तीसरी पोरुषी में मुखवस्त्रिका, वस्त्र, पात्र आदि की प्रतिलेखना करते हैं यावत् गौतमस्वामी के समान पारणे के लिए भगवान् की आज्ञा मांगते हैं। यावत् काकंदी नगरी में आये और नगरी के उच्च, नीच, मध्यम कुलों में भ्रमण कर आयम्बिल वाला रूखा सूखा जिसे अन्य श्रमणादि नहीं चाहते हैं ऐसा आहार उन्होंने ग्रहण किया ।
तए णं से धणे अणगारे ताए अब्भुज्जयाए पयययाए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमाणे जइ भत्तं लभइ तो पाणं ण लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं
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ण लभइ ।
कठिन शब्दार्थ अब्भुज्जयाए अभ्युद्यत - उद्यम वाली, पयययाए - प्रकृष्ट यत्न वाली, पयत्ता- गुरुओं से आज्ञप्त, पग्गहियाए उत्साह के साथ स्वीकार की हुई, एसणाएएषणा समिति से, एसमाणे - गवेषणा करता हुआ, जइ - यदि, भत्तं भात (आहार), लभ - मिलता है।
भावार्थ
धन्य अनगार उद्यमी साधु जैसी एषणा करते हैं वैसी प्रयत्नवाली, गुरु द्वारा अनुज्ञा दी गई, स्वयं स्वीकार की हुई एषणा समिति द्वारा गवेषणा करते हुए कभी आहार मिल जाता है तो पानी नहीं मिलता और कभी पानी मिलता है तो भोजन नहीं मिलता है।
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तणं से धणे अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसाई अपरितंतजोगी जयण-घडण - जोग-चरित्ते अहापज्जत्तं समुदाणं पडिगाहेइ, पडिगाहित्ता काकंदीओ णयरीओ पडिणिक्खमइ, जहा गोयमे जाव पडिदंसे ।
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