Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 57
________________ ४० __ अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र ****************************************************************** भावार्थ - धन्य अनगार के पांव की अंगुलियों का तप रूप लावण्य इस प्रकार का हो गया था जैसे तुवर की फली, मूंग की फली, उड़द की कोमल फली को तोड़ कर धूप में डाली हो तब वह सूखती-सूखती एकदम मुरझा जाती है इसी प्रकार धन्य अनगार के पांव की अंगुलियां सूख गई थी यावत् उनमें मांस और रुधिर दिखाई ही नहीं देता था। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में धन्यकुमार की तप के कारण सूखी हुई पैरों की अंगुलियों की सुंदरता का वर्णन किया गया है। धन्यकुमार के पांवों के तरह ही पैरों की अंगुलियां भी कलाय, मूंग या उड़द की उन फलियों के समान जो कोमल कोमल तोड़ कर धूप में डाल दी गई होंमुरझा गई थी। उनमें भी मांस और रुधिर नहीं रह गया था अतः हड्डी, चमड़ा और नसें ही दिखने में आती थी। जंघा वर्णन धण्णस्स णं अणगारस्स जंघाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए काकजंघाइ वा कंकजंघाइ वा ढेणियालियाजंघाइ वा जाव णो मंससोणियत्ताए। कठिन शब्दार्थ - जंघाणं - जंघाओं-पांव की पिण्डलियों का, काकजंघाइ - काक (कौए) की जंघा, कंकजंघाइ - कंक पक्षी की जंघा, ढेणियालियाजंघाइ - ढेणिकालिक पक्षी की जंघा। भावार्थ - धन्य अनगार की जंघाओं (पिण्डलियों) का तप रूप लावण्य इस प्रकार का हो गया था जैसे कौए की जंघा, कंक पक्षी की जंघा अथवा ढेणिक (ढंक) पक्षी की जंघा हो जो स्वभावतः मांस रुधिर रहित होती है उसी प्रकार धन्य अनगार की पिण्डलियां भी सूख गई थी यावत् उनमें मांस और रुधिर दिखाई ही नहीं देता था। ____ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में धन्य अनगार की जंघा का वर्णन किया गया है। तप के प्रभाव से धन्य अनगार की जंघाएं मांस और रुधिर के अभाव में ऐसी प्रतीत होती थीं मानो काकजंघा नामक वनस्पति की-जो स्वभावतः शुष्क होती है - नाल हों अथवा यों कहिए कि वे कौए की जंघाओं के समान ही निर्मांस हो गई थी अथवा उनकी उपमा कंक और ढंक पक्षियों की जंघाओं से दे सकते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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