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अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र III
+++++++ ++++++++++++++++++ कठिन शब्दार्थ - तहारूवाणं - तथारूप, थेराणं - स्थविरों के, अंतिए - पास, सामाइयमाइयाई - सामायिक आदि, एक्कारस अंगाई - ग्यारह अंगों का, अहिजइ - अध्ययन करता है।
भावार्थ - धन्य अनगार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तथारूप स्थविरों के समीप सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन करते हुए तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में धन्य अनग़ार के पठन (अध्ययन) के विषय में कथन किया गया है।
धन्य अनगार का तप तेज तए णं से धण्णे अणगारे तेणं ओरालेणं जहा खंदओ जाव सुहुयहुयासणे इव तेयसा जलंते उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठइ।
कठिन शब्दार्थ - ओरालेणं - उदार तप से, सुहयहुयासणे - भलीभांति होम की गई (हवन की) अग्नि, तेयसां - तप रूपी तेज से जाज्वल्यमान होकर, उवसोभेमाणे - शोभित होते हुए। ___ भावार्थ - धन्य अनगार उस उदार (प्रधान) तप के द्वारा स्कंदक मुनि के समान यावत् भलीभांति होम की गई अग्नि के समान तप रूपी तेज से जाज्वल्यमान होकर अत्यंत शोभित होते हुए विचरने लगे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में स्पष्ट किया गया है कि तप और संयम की कसौटी पर चढ़ कर यद्यपि धन्य अनगार का शरीर तो अवश्य कृश हो गया था किंतु उनकी आत्मा एक अलौकिक बल को प्राप्त कर रही थी जिसके कारण उनके चेहरे का तेज हवन की अग्नि के समान देदीप्यमान हो रहा था। अब सूत्रकार धन्य अनगार के तप के साथ उनके शरीर का भी वर्णन करते हैं -
धन्य अनगार के पांवों का वर्णन धण्णस्स णं अणगारस्स पायाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहाणामए सुक्कछल्लीइ वा, कट्ठपाउयाइ वा, जरग्गओवाहणाइ वा, एवामेव
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