Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 45
________________ अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र धन्यकुमार का विवाह तएं णं सा भद्दा सत्थवाही धण्णं दारयं उम्मुक्कबालभावं जाव भोगसमत्थं यावि जाणित्ता बत्तीसं पासायवडिंसए कारेइ अब्भुग्गयमूसिए जाव तेसिं मज्झे भवणं अणेगखंभसयसण्णिविद्वं जाव बत्तीसाए इब्भवरकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेइ, गेण्हावित्ता बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिं पासायवडिंसए फुहंतेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव विहरइ । २८ कठिन शब्दार्थ - उम्मुक्कबालभावं - उन्मुक्त बालभावं बालकपन से अतिक्रान्त, पासायवडिंसए - श्रेष्ठ प्रासाद (महल), अब्भुग्गयमूसिए - बहुत बड़े और ऊँचे, मज्झे मध्य में, अणेगखंभ सयसण्णिविट्ठ - अनेक सैकड़ों स्तम्भों से युक्त, इब्भवरकण्ण श्रेष्ठ श्रेष्ठियों की कन्याओं के साथ, एगदिवसेणं - एक ही दिन, पाणिं गेण्हावइ - पाणि ग्रहण करवाया, दाओ - दहेज, उप्पिं हुए मृदङ्ग आदि वाद्यों के नाद से । ऊपर, फुटंतेहिं मुइंगमत्थएहिं - जोर जोर से बजते Jain Education International - - भावार्थ तब उस भद्रा सार्थवाही ने धन्यकुमार को बाल्यावस्था से मुक्त हुआ यावत् भोग भोगने में समर्थ जान कर बत्तीस श्रेष्ठ प्रासाद (भवन) बनवाये। वे अति ऊंचे थे यावत् उनके मध्य में अनेक सैंकड़ों स्तम्भ से भूषित एक श्रेष्ठ महल बनवाया यावत् उत्तम इभ्योंश्रेष्ठियों की बत्तीस कन्याओं के साथ एक ही दिन में उसका विवाह करवाया। विवाह करवा कर बत्तीस-बत्तीस दास-दासी आदि दायजा (दहेज) दिया यावत् वह धन्यकुमार उन बत्तीस कन्याओं के साथ उन श्रेष्ठ प्रासादों के ऊपर वाद्यों के नाद सहित यावत् पांचों इन्द्रियों के विषय - सुखों को भोगता हुआ विचरने लगा । विवेचन प्रस्तुत सूत्रों में धन्यकुमार के बालकपन, विद्याध्ययन, विवाह संस्कार और सांसारिक सुखों के अनुभव के विषय में वर्णन किया गया है। यह सब वर्णन भगवती सूत्र शतक ११ उद्देशक ११ में वर्णित महाबल कुमार, ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में वर्णित मेघकुमार आदि के समान है अतः जिज्ञासुओं को वहां से देखना चाहिये । युवावस्था प्राप्त होने पर भद्रा सार्थवाही ने बत्तीस इभ्य सेठों की बत्तीस कन्याओं के साथ एक ही दिन में धन्यकुमार का विवाह कराया । - je aje je aje aje aje aje aj j - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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