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दीर्घसेनकुमार नामक प्रथम अध्ययन
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, धारिणी देवी, सीहो सुमिणे, जहा जालि तहा जम्मं बालत्तणं कलाओ, णवरं दीहसेणे कुमारे सच्चेव वत्तव्वया जहा जालिस्स जाव अंतं काहिइ।
कठिन शब्दार्थ - सीहो - सिंह का, सुमिणे - स्वप्न, जम्मं - जन्म, बालत्तणं - बालभाव, कलाओ - कलाओं का सीखना, अंतं काहिइ - अन्त करेगा।
भावार्थ - सुधर्मा स्वामी ने जम्बूस्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि हे जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उसमें गुणशील उद्यान था। वहां श्रेणिक राजा था। उसकी धारिणी देवी थी। उसने सिंह का स्वप्न देखा। जिस प्रकार जालिकुमार का जन्म हुआ, उसी प्रकार जन्म हुआ उसी प्रकार बालकपन रहा और उसी प्रकार कलाएं सीखीं। विशेषता केवल इतनी है कि इसका नाम दीर्घसेन कुमार रखा गया। शेष वक्तव्यता जैसी जालिकुमार की है उसी प्रकार जाननी चाहिये यावत् महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर समस्त दुःखों का अंत करेगा।
शेष अध्ययनों का वर्णन एवं तेरस वि रायगिहे, सेणिओ पिया धारिणी माया, तेरसण्ह वि सोलसवासापरियाओ आणुपुव्वीए विजए दोण्णि वेजयंते दोण्णि जयंते दोण्णि अपराजिए, सेसा महादुमसेणमाई पंच सव्वट्ठसिद्धे।
भावार्थ - इसी प्रकार तेरह अध्ययनों के विषय में जानना चाहिये। ये सभी राजगृह नगर में उत्पन्न हुए और सभी महाराजा श्रेणिक और धारिणी देवी के पुत्र थे। इन तेरह ही कुमारों ने सोलह वर्ष तक संयम-पर्याय का पालन किया। इनमें अनुक्रम से दो विजय विमान, दो वैजयंत विमान, दो जयन्त विमान और दो अपराजित विमान में उत्पन्न हुए। शेष महाद्रुमसेन आदि पांच मुनि सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए।
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