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तच्चो वग्गो
तृतीय वर्ग
जम्बूस्वामी की जिज्ञासा
(३)
अनुत्तरोपपातिकदशा के द्वितीय वर्ग में तेरह अध्ययनों का वर्णन करने के बाद सूत्रकार इस तृतीय वर्ग में धन्यकुमार आदि दस राजकुमारों का वर्णन करते हैं। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैजइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ?
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भावार्थ हे भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्ष को प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के द्वितीय वर्ग का पूर्वोक्त अर्थ कहा है तो हे भगवन्! अनुत्तरोपपातिक दशा के तृतीय वर्ग का श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या अर्थ प्रतिपादन किया है?
विवेचन - द्वितीय वर्ग की समाप्ति होने पर आर्य जम्बू स्वामी ने पुन: सुधर्मा स्वामी - से निवेदन किया कि - हे भगवन्! द्वितीय वर्ग का अर्थ जो आपने फरमाया है वह तो मैंने श्रवण कर लिया है अब मेरी तृतीय वर्ग का अर्थ जानने की जिज्ञासा है अतः मुझ पर कृपा कर फरमाइये के श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के तीसरे वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन केया है। सुधर्मा स्वामी, जम्बूस्वामी के उक्त प्रश्न का समाधान करते हुए फरमाते हैं कि -
सुधर्मा स्वामी का समाधान
एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स इस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा -
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धणेय सुणक्खत्ते य, इसिदासे य आहिए । पेल्लए रामपुत्ते य, चंदिमा पिट्ठिमाइया ॥ १ ॥ पेढालपुत्ते अणगारे, णवमे पुट्टिले विय। वेहल्ले दस वुत्ते, इमे ते दस आहिए ॥ २ ॥
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