Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 29
________________ १२ jjjjj se je je je sje QUY CÁCH पहले मास में पन्द्रह, दूसरे मास में दस, तीसरे मास में आठ, चौथे मास में छह, पांचवें मास में पांच, छठे मास में चार, सातवें मास में तीन, आठवें मास में तीन, नववें मास में तीन, दसवें मास में तीन, ग्यारहवें मास में तीन, बारहवें मास में दो, तेरहवें मास में दो, चौदहवें मास में दो, पन्द्रहवें मास में दो, सोलहवें मास में दो दिन पारणे के होते हैं। ये सब मिला कर ७३ दिन पार के होते हैं। तपस्या के ४०७ और पारणे के ७३ - ये दोनों मिला कर ४८० दिन होते हैं अर्थात् सोलह महीनों में यह तप पूर्ण होता है। इस तप में किसी महीने में तपस्या और पारणें के कीचड़ से पैदा हो। कीचड़ से बहुत सी चीजें पैदा होती है। जैसे कि कोई (शैवाल) मेढ़क आदि । किन्तु 'पङ्कज' शब्द का रूढ़ अर्थ है - कमल । अतः व्यवहार में 'पङ्कज' शब्द का अर्थ 'कमल' ही लिया जाता है, काई (शैवाल) मेढ़क आदि नहीं। इसी तरह 'अमर' शब्द है, जिसकी व्युत्पत्ति है - 'न म्रियतेइ ति अमर:' अर्थात् जो मरे नहीं, उसको अमर कहते हैं। यह 'अमर' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ है। किन्तु इसका रूढ़ अर्थ है: - देव या 'अमरचन्द्र' नाम का व्यक्ति । अपनी आयु समाप्त होने पर देव भी मरता है और 'अमरचन्द्र' नाम का व्यक्ति भी मरता है । इस अपेक्षा इन में 'अमर' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ घटित ही नहीं होता है, किन्तु चूंकि - 'अमर' शब्द इन अर्थों में रूढ़ हो गया है। इसलिए 'देव' तथा 'अमरचन्द' नाम के व्यक्ति को 'अमर' कहते हैं। है। उपवास को चतुर्थभक्त कहते हैं । अतः चार टक का आहार छोड़ना, यह अथ नहा लेना चाहिये। इसी प्रकार षष्ठभक्त, अष्ठभक्त आदि शब्द- बेला, तेला आदि की संज्ञा है । से - शब्दों का व्युत्पत्त्यर्थ व्यवहार में नहीं लिया जाता है, किन्तु रूढ़ (संज्ञा ) अर्थ ही ग्रहण किया जाता है, जैसे कि - 'पङ्कज' शब्द की व्युत्पत्ति है- 'पङ्कात जातः, 'पङ्कजः ' । अर्थात् जो कीचड़ से पैदा हो। कीचड़ से बहुत सी चीजें पैदा होती है। जैसे कि कोई (शैवाल ) मेढ़क आदि । किन्तु 'पङ्कज' शब्द का रूढ़ अर्थ है - कमल । अतः व्यवहार में 'पङ्कज' शब्द का अर्थ 'कमल' ही लिया जाता है, काई (शैवाल) मेढ़क आदि नहीं। इसी तरह 'अमर' शब्द है, जिसकी व्युत्पत्ति है - 'न म्रियते ति अमर:' अर्थात् जो मरे नहीं, उसको अमर कहते हैं । यह 'अमर' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ है। किन्तु इसका रूढ़ अर्थ है: - देव या 'अमरचन्द्र' नाम का व्यक्ति । अपनी आयु समाप्त होने पर देव भी मरता है और 'अमरचन्द्र' नाम का व्यक्ति भी मरता है । इस अपेक्षा इन में 'अमर' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ घटित ही नहीं होता है, किन्तु चूंकि - 'अमर' शब्द इन अर्थों में रूढ़ हो गया है। इसलिए 'देव' तथा 'अमरचन्द' नाम के व्यक्ति को 'अमर' कहते हैं । इसी प्रकार 'चउत्थभत्त' शब्द भी 'उपवास' अर्थ में रूढ़ है। अतः 'चार टंक आहार छोड़ना' यह Jain Education International अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र 7 ************** For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org

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