Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ आव्यो होय तेवू न मनाय ? "जेम 'चत्तारि मंगलं'ना प्रसिद्ध पाठमां क्यांय 'आयरिया' तथा 'उवज्झाया' मंगलं नथी आवतुं, 'साहू मंगलं' मां ज ते बे पदो समाई जतां होवानुं सर्वस्वीकृत छे, तेम आ नवकार-मंगल परत्वे पण न समजवू जोईए ?" आ विद्वानो, में ए वृद्ध मुनिने समजाव्या, उपलब्ध पुरातात्त्विक साक्ष्योने आधारे आवी सम्भावनामात्र रजू करे छे. अने ते सन्दर्भमां तेमनी वात साव नगण्य के विचारने पण अयोग्य-एवी तो नथी ज. परन्तु, ए विद्वानो, तमे ५ पद मानो तो ते खोटुं छे, एवं कहेवा जराय इच्छता नथी. तेओ तेनो विरोध के निषेध करवा माटे अथवा मान्य परम्पराने भ्रष्ट करवा माटे आq लखे छे एवं नथी. तमे ५ के ९ पद मानो, तो एक सामान्य धर्मपरायण मनुष्य अथवा जैन गृहस्थ लेखे ढांकी पण ५ पदने श्रद्धापूर्वक सांभळे छे, स्वीकारे छे. तेमनी रजूआत तो मात्र संशोधननी रीते नवकार-मंगलना पाठमां थयेल क्रमिक विकास परत्वे ज छे. अने संशोधन एटले परम्पराना ढांचाने हचमचाववानी प्रक्रिया ज तो ! आमां आपणे नाराज थवानुं के धर्मद्रोह समजीने तूटी पडवानुं कोई ज कारण नथी. मारा विस्मय वच्चे, कट्टरपंथी गणाता ए मुनिराजे मारी वातना हार्दने सद्भाव साथे प्रमाण्डे, स्वीकार्यु. ते क्षणे मने थयु के संशोधन अने परम्परा वच्चे, पोतपोतानी वातमां अडग रहेवा छतां, विरोध के वैमनस्य जेवू क्यां रहे छे ? प्रश्न मात्र विवेकपूर्वक समजवानो ज छे. परम्पराने संशोधन सामे मोटामां मोटो वांधो होय तो ते एक ज वाते छे : संशोधको हमेशां जैन परम्पराना के भारतीय परम्पराना पूजनीय गणातां तत्त्वोने तुच्छकारथी ने तोछडाईथी नवाजे छे, ते वाते. दा.त. जे लोको भगवान महावीर माटे कहेशे : "महावीर ए जैनोनो छेल्लो तीर्थंकर हतो." अथवा तो हेमचन्द्राचार्य जेवा जैनाचार्य माटे लखशे : "हेमचन्द्र ए सिद्धराजनी सभानो सभ्य हतो," "हरिभद्रे घणा ग्रन्थो रच्या हता; ते पोताना समयनो मोटो विद्वान मनातो हतो." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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