Book Title: Antkruddasha Sutra Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak SanghPage 11
________________ ************* Jain Education International [10] तदनुसार अर्जुन मालाकार भी बाल्य काल से ही उसकी फूलों से अर्चना करता इसके पश्चात् वह राजगृह के राज्य मार्ग पर बैठ कर फूलों को बेचता था । उसी राजगृह नगर में छह पुरुषों की एक ललित गोष्ठी रहती थी, जिसे राजा का किसी विशिष्ट कार्य सम्पन्न करने पर उन्हें अपने इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता थी । एक दिन राजगृह नगर में उत्सव की घोषणा हुई। अतएव अर्जुनमालाकार अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ प्रातःकाल जल्दी बगीचे में गया और फूल इकट्ठे करके जैसे ही यक्षायतन की ओर जाकर उस यक्ष की पूजा अर्चना करने लगा कि यक्षायतन के पीछे छीपे छह ललित गोष्टी पुरुषों ने अर्जुनमाली को रस्सी से बांध कर एक ओर लुढ़का दिया और उसी के सामने उसकी पत्नी बन्धुमती के साथ भोग भोगने लगे । अर्जुनमाली विचार करने लगा कि जिस मुद्गरपाणि यक्ष की वह बाल्यकाल से पूजा अर्चना कर रहा है, क्या वह इस विपत्ति में मेरी सहायता नहीं करता ? इससे लगता है यहाँ कोई मुद्गरपाणि यक्ष नहीं प्रत्युत मात्र यह तो काठ की प्रतिमा ही है। मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुनमाली के विचार को जानकर उसके शरीर में प्रवेश कर छह गोठिले पुरुषों सहित बन्धुमती को एक हजार पल परिमाण वाले लोह के मुद्गर से मार डाला और इसी क्रम से प्रति छह पुरुष और एक स्त्री सहित सात प्राणियों की घात करने लगा । उसी नगर में सुदर्शन नाम का सेठ रहता था, जो ऋद्धि सम्पन्न एवं जीव - अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक था । उन्हीं दिनों श्रमण भगवान् महावीर प्रभु का राजगृह नगर के गुणशीलक उद्यान में पधारना हुआ । श्रमणोपासक सुदर्शन सेठ माता-पिता की आज्ञा प्राप्त कर भगवान् के दर्शन करने पैदल ही चलकर मुद्गरपाणि यक्ष के यक्षायतन के न अति दूर न अति निकट हो कर गुणशीलक उद्यान में जाने लगा, तो मुद्गरपाणि यक्ष अपना मुद्गर घुमाता हुआ सुदर्शन सेठ की ओर आने लगा, तब सुदर्शन सेठ ने उसे अपनी ओर आते देखकर भूमि का प्रमार्जन किया एवं अपने मुंह पर उत्तरासंग लगा कर सागारी संथारा धारण कर गया। यक्ष ज्यों ही नजदीक आया और सुदर्शन सेठ पर प्रहार करना चाहा किन्तु सुदर्शन श्रमणोपासक को अपने तेज से अभिभूत नहीं कर सका यानी उसका बल कुछ भी काम नहीं कर सका। अतएव वह अर्जुनमाली के शरीर को छोड़ कर चला गया। उसके बाद अर्जुनमाली जमीन पर गिर पड़ा। सुदर्शन सेठ अपने को उपसर्ग रहितं जानकर कर अपनी प्रतिज्ञा पाली और अर्जुनमाली को सचेष्ट करने का प्रयत्न करने लगे । जब अर्जुनमाली सचेत हो गया तो आप कौन है ? और कहाँ जा रहे हो ? सुदर्शन सेठ ने कहा मैं श्रमणोपासक - उसने पूछा - **************** For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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