Book Title: Antkruddasha Sutra Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 9
________________ [8] . 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 से उस परीषह को सहन किया। परिणामों की उच्च धारा के कारण समस्त कर्मों को क्षय करके सिद्ध,बुद्ध, मुक्त हुए। कथानक बड़ा विस्तृत एवं रोचक होने के साथ-साथ अनेक शिक्षाएं-प्रेरणाएं प्रदान करने वाला है। अतएव पाठकों को इसका पूर्ण पारायण करना चाहिए। इसके अलावा सारण कुमार, सुमुख, दुर्मुख, कूपक, दारुक और अनादृष्टि आदि राजकुमारों का वर्णन इस वर्ग में है। सभी ने भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षा अंगीकार की। तप संयम की उत्कृष्ट साधना करके सभी राजकुमार कर्मों का क्षय करके सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त हुए। इस प्रकार तीसरा वर्ग पूर्ण. हुआ। चतुर्थ वर्ग - इस वर्ग के दस अध्ययन हैं - १. जालि २. मयालि ३. उवयालि ४.', पुरुषसेन ५. वारिसेन ६. प्रद्युम्न ७. शाम्ब ८. अनिरुद्ध ६. सत्यनेमि और १०. दृढ़नेमि। प्रथम पांच राजकुमार के पिता का नाम वसुदेव तथा माता का नाम धारिणी था। प्रद्युम्नकुमार के पिता का नाम कृष्ण, माता का नाम रुक्मिणी था। शाम्बकुमार के पिता का नाम कृष्ण और माता का नाम जाम्बवती था। इस प्रकार अनिरुद्धकुमार के पिता का नाम प्रद्युम्न और माता का नाम वैदर्भी था तथा सत्यनेमि, दृढ़नेमि दोनों राजकुमारों के पिता का नाम समुद्रविजय और माता का नाम शिवादेवी था। सभी राजकुमारों ने भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षा अंगीकार की। सोलह वर्ष पर्यन्त दीक्षा का पालन किया। बारह अंगों का अध्ययन किया। एक मास का संथारा करके और सर्व कर्मों का क्षय करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। ___ पांचवां वर्ग - त्रिखण्डाधिपति कृष्ण वासुदेव को अपनी मौजूदगी में और वह भी द्वारिका नगरी में अपने लघुभ्राता गजमुनि की सोमिल ब्राह्मण द्वारा अकाल घात का बड़ा भारी आघात लगा। साथ ही उन्हें यह समझने में भी देर नहीं लगी कि अब मेरी पुण्यवानी क्षीण होने का समय नजदीक आ रहा है। एक समय था जब द्वारिका का निर्माण देवताओं द्वारा किया गया और मैंने अपने जीवन काल में ३६० युद्ध किये और सभी में विजयश्री हासिल की। पर आज एक मामूली ब्राह्मण ने इतनी हिम्मत कर मेरे लघुभ्राता गजमुनि की घात कर डाली। अतएव प्रभु से द्वारिका की रक्षा का उपाय न पूछ कर, उसके विनाश के लिए पूछ लिया - "हे भगवन्!" बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक के समान इस द्वारिका नगरी का विनाश किस कारण से होगा? भगवान् ने फरमाया - हे कृष्ण! इस द्वारिका नगरी का विनाश सुरा - मदिरा, अग्नि और द्वीपायन ऋषि के कारण होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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