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इसी द्वारिका नगरी में 'अन्धकवृष्णि" नाम के राजा राज्य करते थे, जिनके धारिणी नाम की रानी थी, जो स्त्री के सभी लक्षणों से सुशोभित थी। उसने एक बालक को जन्म दिया जिसका नाम गौतम कुमार रखा। युवावस्था प्राप्त होने पर आठ सुन्दर कन्याओं के साथ उनका विवाह हुआ। उस समय अपने शासन की आदि करने वाले बाईसवें तीर्थंकर भगवान् अरिष्टनेमि ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए द्वारिकानगरी में पधारे। कृष्ण वासुदेव सहित सभी नागरिक भगवान् के समीप धर्म श्रवण करने गये। गौतमकुमार भी प्रभु के दर्शनार्थ गया। प्रभु की वाणी का श्रवण कर गौतमकुमार को वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने प्रभु के पास प्रव्रज्या अंगीकार की। दीक्षा अंगीकार करके ११ अंगों का अध्ययन किया, अनेक प्रकार की कठोर तपस्या की, भिक्षु की प्रतिमा, गुणरत्न संवत्सर, तप आदि की आराधना की। बारह वर्ष दीक्षा पर्याय का पालन कर, मासिक संलेखना करके शत्रुजय पर्वत पर सिद्ध,बुद्ध,मुक्त हुए।
गौतमकुमार के समान शेष नौ कुमारों का वर्णन भी एक समान हैं,जिनके नाम इस प्रकार हैं - १. समुद्रकुमार २. सागरकुमार ३. गम्भीरकुमार ४. स्तिमितकुमार ५. अचलकुमार ६. कम्पिलकुमार ७. अक्षोभकुमार ८. प्रसेनजितकुमार ६. विष्णुकुमार। इन सब राजकुमारों के पिता का नाम अन्धकवृष्णि और माता का नाम धारिणी था। सभी ने प्रभु अरिष्टनेमि के समीप दीक्षा अंगीकार की और गौतम की भांति तप संयम की आराधना कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। इस प्रकार प्रथम वर्ग में दस अध्ययनों का वर्णन है।
दूसरा वर्ग - इस वर्ग के आठ अध्ययन हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं - १. अक्षोभ २. सागर ३. समुद्र ४. हिमवान् ५. अचल ६. धरण ७. पूरण और ८. अभिचन्द इन आठ राजकुमारों का वर्णन दूसरे वर्ग में हैं। इन सभी आठों ही राजकुमारों के पिता का नाम अन्धकवृष्णि और माता नाम का धारिणी था। प्रथम वर्ग में वर्णित गौतम कुमार के समान . अक्षोभ आदि आठ अध्ययन हैं। गौतम आदि दस राजकुमारों के समान इन्होंने भी गुणरत्न संवत्सर आदि तप किया और सोलह वर्ष तक संयम का पालन कर शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए।
तीसरा वर्ग - इस वर्ग में तेरह अध्ययन हैं - १. अनीकसेन २. अनन्तसेन ३. अजितसेन ४. अनिहतरिपु ५. देवसेन ६. शत्रुसेन ७. सारण ८. गज ६. सुमुख १०. दुर्मुख ११. कूपक १२. दारुक और १३. अनादृष्टि।
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