Book Title: Antkruddasha Sutra Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 8
________________ ************ Jain Education International [7] ***********<<<<<< ******** इनमें प्रथम के छह अध्ययनों में अमीकसेन आदि छह भाइयों का वर्णन है जो भद्दिलपुर नगर के निवासी नाग गाथापति और सुलसा के पुत्र थे । जो अति सुकुमाल थे । यौवन अवस्था में इन सभी राजकुमारों का इभ्य सेठों की बत्तीस कन्याओं के साथ विवाह हुआ । कालान्तर में अरहन्त अरिष्टनेमि प्रभु का भद्दिलपुर नगर के बाहर पधारना हुआ। जनसमुदाय भगवान् के दर्शन एवं उनकी वाणी सुनने गये । अनीकसेनकुमार आदि भी गये । भगवान् की वाणी सुन कर सभी छहों भाइयों ने भगवान् के समीप दीक्षा अंगीकार की। वे छहों अनगारों ने जिस दिन दीक्षा अंगीकार की उसी दिन से भगवान् से यावज्जीवन बेले की तपस्या की आज्ञा प्राप्त कर, अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । तीन संघाड़े बनाकर बेले के उम्र, रूप, लावण्य को देखकर संयोग से एक दिन छहों अनगार क्रमशः २-२ मुनियों के पारणे के दिन देवकी महारानी के घर गोचरी पधारे। उनकी समान देवकी महारानी को अपने बाल्यकाल की बात याद आ गई कि अतिमुक्तक अनगार ने मेरे द्वारा आठ पुत्रों का जन्म होना बतलाया था, जो आकृति, वय और क्रान्ति में समान होंगे। ऐसे पुत्रों को अन्य कोई माता जन्म नहीं देगी। पर आज वह प्रत्यक्ष देख रही है कि अन्य किसी माता ने भी नलकुबेर के समान आकृति, वय और क्रान्ति वाले पुत्रों को जन्म दिया है। इसका समाधान प्राप्त करने वहाँ विराजित अरिष्टनेमि प्रभु के पास गई। प्रभु ने फरमाया कि ये छहों पुत्र सुलसा के नहीं किन्तु तुम्हारे ही हैं। यह समाधान सुनकर वह चिंतातुर हो गई । कृष्ण-वासुदेव उस समय माता देवकी के चरण वंदन करने आते हैं। माता को शोकातुर • देखकर उनसे इसका कारण पूछा तो देवकी रानी ने सम्पूर्ण घटना कृष्ण वासुदेव को बता दी। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने सीधे पौषधशाला में जाकर तेले के तप की आराधना की। जिसके कारण हरिनैगमेषीदेव की आराधना की, उसके उपस्थित होने पर अपने लघुभ्राता होने की कामना की। परिणाम स्वरूप यथा समय देवकी रानी के एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम गजसुकुमाल रखा, यौवन अवस्था में उन्होंने भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षा अंगीकार की। जिस दिन दीक्षा ली उसी दिन, दिन के चौथे प्रहर में भगवान् अरिष्टनेमि की आज्ञा • लेकर महाकाल श्मशान में जाकर एक रात्रि की भिक्षु प्रतिमा अंगीकार कर ध्यानस्थ खड़े हो गए। उसी समय सोमिल ब्राह्मण उधर से निकला । गजमुनि को देखकर पूर्व भव का वैर जागृत हुआ। जिसके कारण मुनि के सिर पर धधकते हुए अंगारे रख दिए। मुनि ने समभाव For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.orgPage Navigation
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