Book Title: Anekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 10
________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन दिये हैं । पाठ सौ शब्द इस उध्याय मे है तथा दो सौ से प्रथम महत्त्वपूर्ण कार्य अपेक्षित है, वह है सोमदेव के दोनो भी अधिक शब्द अन्य अध्यायो मे यथास्थान दिये है। उपलब्ध अन्यों के प्रामाणिक संस्करण तैयार करने का। इस अध्याय मे शब्दों को वैदिक, पौराणिक, दार्शनिक ऐसे सस्करण जिनमें इन ग्रन्थों से सम्बन्धित सम्पूर्ण प्रकाप्रादि श्रेणियो में वर्गीकृत न करके प्रकारादि कम से शिन और अप्रकाशित सामग्री का उपयोग किया गया हो। प्रस्तुत किया गया है। शब्दों पर मैने तीन प्रकार से अपने अनुसबान काल मे मुझे निरन्तर इसकी तीव्र अनु अपने पासवान विनार किया है-१. कुछ शब्द ऐसे हैं, जिन पर विशेष भूति होती रही है। अभी तक दोनो ग्रन्थों के जो सस्करण प्रकाश डालना उपयुक्त लगा। ऐसे शब्दो का मूल सदर्भ निकले है, वे अशुद्धि पुज तो है ही, अनेक दृष्टियो से अर्थ तथा आवश्यक टिप्पणी दी गई है। २. सोमदेव के अपूर्ण और अवैज्ञानिक भी है। इसके अतिरिक्त उनको प्रयोग के आधार पर जिन शब्दों के अर्थ पर विशेष प्रकाश प्रकाशित टा भी ब्दा के अथ पर विशष प्रकाश प्रकाशित हुए भी इतना समय बीत गया कि बाजार में पड़ता है, उन शब्दो के पूरे मदर्भ दे दिये है। ३. जिन एक भी प्रति उपलब्ध नहीं होती। भी पति पतन शब्दो का केवल अर्थ देना पर्याप्त लगा, उनका सदर्भ यशस्तिलक का एक ऐसा सस्करण मै स्वयं तैयार सकेत तथा अर्थ दिया है। कर रहा हूँ, जिसमे श्रीदेव के प्राचीन टिप्पण. श्रुतसागर ___ शब्दों पर विचार करने का प्राधार श्रीदेव कृत की संस्कृत टीका तथा प्राधनिक अनुसघानो का तो पूर्ण टिप्पण तथा श्रुतसागर की अपूर्ण संस्कृत टीका तो रहे ही उपयोग किया ही जायगा, हिन्दी अनुवाद और सास्कृतिक है, प्राचीन शब्द काश तथा मानियर विलियम्म पार प्रा० भाष्य भी साथ में रहेगा। इस सस्करण के स्वरूप की आप्टे के कोशो का भी उपयोग किया है। स्वय सोमदेव माधारण परिकल्पना इस प्रकार हैका प्रयोग भी प्रसगानुसार शब्दो के अर्थ को खोलता चलता १ यशस्तिलक का मूल शुद्ध पाठ है । श्लिष्ट, क्लिष्ट, अप्रचलित तथा नवीन शब्दोके कारण (प्राचीन पाण्डुलिपियो के आधार पर) यशस्तिलक दुरूह अवश्य लगता है, किन्तु यदि सावधानो- २. श्रतसागर की सम्कृत टीका। पूर्वक इसका मूक्ष्म अध्ययन किया जाए तो क्रम बम से ३ मूल का हिन्दी अनवाद । यशस्तिलक के वर्णन स्वय ही आगे पीछे के सदर्भो को - ४. सास्कृतिक भाष्य । स्पष्ट करते चलते है। इस प्रकार यशस्तिलक की कुजी ५-६. प्रस्तावना में यशस्तिलक की सम्पूर्ण उपलब्धियो यशस्तिलक मे ही निहित है। सोमदेव की इस बहुमूल्य का सर्वेक्षण तथा परिशिष्ट मे यशस्तिलक का सामग्री का उपयोग भविष्य में कोश ग्रन्थो में किया जाना विशाल शब्दकोश। चाहिए। नीतिवाक्यामृत के सपादन का कार्य पटनाके श्री श्रीधर इस तरह उपर्युक्त पाच अध्यायों के पच्चीस परिच्छेदो वामदेव मौहानी ने करने की रुचि दिखायी है। प्राशा है मे प्रस्तुत प्रबन्ध पूर्ण होता है। वे इसे अवश्य करेगे । यदि किन्ही कारणोवश न कर पाये, सोमदेव के समग्र अध्ययन के लिए इस समय जो सर्व तो यशस्तिलक के बाद इसे भी मै पूरा करूँगा। अनेकान्त के ग्राहक बनें 'भनेकान्त' पुराना ख्यातिप्राप्त शोष-पत्र है। अनेक विद्वानों और समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों का अभिमत है कि वह निरन्तर प्रकाशित होता रहे। ऐसा तभी हो सकता है जब उसमें घाटा न हो और इसके लिए प्राहक संख्या का बढ़ाना अनिवार्य है। हम विद्वानों, प्रोफेसरों, विद्याषियों, सेठियों, शिक्षा-संस्थानों, संस्कृत विद्यालयों, कालेजों, विश्वविद्यालयों और न भुत को प्रभावना में श्रवा रखने वालों से निवेदन करते हैं कि 'भनेकान्त के हक स्वयं बने और दूसरों को बनावें। और इस तरह बन संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार में सहयोग प्रदान करें। व्यवस्थापक 'अनेकान्त'

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