Book Title: Anekant 1940 08 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 9
________________ वर्ष ३, किरण १०] हम और हमारा यह सारा संसार ऐसा ही माना जाये तब तो कोई भी किसी पापका करने पेड़ भी बहुत ही सुहावने लगने लगे; तब मेरे भाग्यने वाला, अथवा अपराधी नहीं ठहरता है । तब तो राज्य ही तो ये सब पेड़ वहाँ उगाकर खड़े कर रखे थे। एक का सारा प्रबन्ध, अदालत और पुलिस', धर्मशास्त्र और पेड़ टुंड मुंड सूखा खड़ा था, वह मुझे अच्छा नहीं उपदेश सब ही व्यर्थ हो जाते हैं और बिल्कुल ही अँधा- लगा; तब मेरा कोई खोटा भाग्य ज़रूर था, जिसने धुंधी फैल जाती है। _यह सूखा पेड़ खड़ा कर रखा था । फिर जहाँ में टट्ठी यदि कोई यह कहने लगे कि सुख या दुख, जो बैठा वहाँ हज़ारों डाँस मच्छर मुझे दिक्क करने लगे, कुछ भी मुझको होता है, वह सब मेरे ही अपने किये उनको भी मेरा खोटा भाग्य ही खींचकर लाया था । कर्मोका फल या मेरे अपने भाग्यका ही कराया होता लौटते समय रास्तेमें अनेक स्त्री पुरुष आते जाते दीख है, अकस्मात् कुछ नहीं होता । तो यह भी कहना होगा पड़े, जिनसे मन-बह लाव होता रहा; तब वे भी मेरे कि उम्र भर मैंने जो कुछ देखा, सूंघा, चखा, छुआ भाग्यके ही ज़ोरसे वहाँ श्रा जा रहे थे। फिर आबादीमें या सुना, उससे थोड़ा या बहुत दुख-सुख मुझको अाकर तो दोर-डंगरों, स्त्री पुरुषों और बूढ़े बच्चोंकी ज़रूर ही होता रहा है । इस वास्ते वे सब वस्तुएँ मेरे बहुतसी चहल पहल देखनेमें आई; तब यह सब दृश्य ही भाग्यसे संसारमें पैदा होती रही हैं । आज सुबह ही भी मेरे भाग्यने ही तो मेरे देखने के वास्ते जुटा रखे थे। जिस मोटरकी गड़गड़ाहटने मुझे जगा दिया वह मेरे एक कुत्ता भौंक भौंक कर मुझे डराने लगा और मेरा भाग्यसे ही चलकर उस समय यहाँ श्राई । उस समय पीछा भी करने लगा जिसको मैंने लाठीसे भगाया, मैं जाग तो गया परन्तु मुझे संदेह रहा कि सुबह हो उसको भी मेरे खोटे भाग्यने ही मेरे पीछे लगाया था। गई या नहीं । कुछ देर पीछे ही रेलकी सीटी सुनाई इसके बाद सूरज निकला तो मेरे भाग्यसे धूप फैली तो दी वह सदा ६ बजे अाती है, इसलिये उससे मुझे मेरे भाग्यसे, फिर दिन भर जो मेरी आँखोंने देखा और सुबह होनेका यकीन होगया । तब मेरा भाग्य ही मेरा कानोंने सुना, संसारके मनुष्यों और पशु पक्षियोंकी वे संदेह दूर करने के लिये रेलको खींचकर लाया । उस सब क्रियायें भी मेरे ही भाग्यसे हुई; और केवल उस समय ठंडी हवा बड़ा भानन्द दे रही थी तब वह भी ही दिन क्या किन्तु उम्र भर जो कुछ मैंने देखा या मेरे भाग्यकी ही चलाई चल रही थी। मैं उठकर जंगल सुना, वह सब मेरे ही भाग्यसे होता रहा, मेंह बरसा को चल दिया, रास्ते में लोगोंके घरोंसे बोलने चालनेकी तो मेरे भाग्यसे, बादल गर्जा तो मेरे भाग्यसे, बिजली श्रावाज़ आ रही थी। जिससे मेरा दिल बहलता था, चमकी तो मेरे भाग्यसे, पर्वा-पछवा हवा चली तो मेरे तब उनको भी मेरे भाग्यने ही जगाकर बोलचाल करा भाग्यसे, रातको अनन्तानन्त तारे निकले तो मेरे भाग्य रखी थी। रास्ते में पेड़ों पर पक्षी तरह तरहकी बोलियाँ से। बोल रहे थे, जो बहुत प्यारी लगती थीं, तो उनको भी परसों रातको सोते सोते एकदम रोनेकी आवाज़ मेरे भाग्यने ही यह बोलियाँ बोलनेके वास्ते कहीं कहींसे आई जिससे मैं जाग गया, मालूम हुआ कि कोई मर लाकर वहाँ इकट्ठा किया था। ___ गया है, मैं बड़े मज़ेकी नींद सो रहा था, इस रोने के कुछ रोशनी हो जाने पर रास्तेके दोनों तरफ़के शोरसे मेरी नींद टूट गई, तब यह भी मानना पड़ेगाPage Navigation
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