Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 57
________________ वर्ष ३, किरण १० ] चन्द धन्धे ऐसे हैं जो हिंसाको ही बढ़ाते हैं । अहिंसक मनुष्यको उन्हें वज्र्ज्य समझना चाहिये । दूसरे अनेक धंधों में अगर हिंसाके लिये स्थान है तो अहिंसा के लिये भी है । हमारे दिल में अगर अहिंसा भरी हुई है तो हम अहिंसक वृत्तिसे उन धन्धोंको करें । हम उन उद्योगोंका दुरुपयोग करें, यह बात दूसरी हैं । ariat अहिंसाका प्रयोग प्राचीन भारत की अर्थ-व्यवस्था मेरे पास कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है । परन्तु मेरा ऐसा यिश्वास है कि हिन्दुस्तान कभी सुखी रहा है । उस जमाने में लोग अपने अपने धन्धे परोपकार बुद्धिसे करते थे। उसमें उदर निर्वाह तो ले लेते थे; लेकिन धन्धा समाजके हितका ही होता था । मेरा कुछ ऐसा खयाल है कि जिन्होंने हिन्दुस्तान के गांवों का निर्माण किया, उन्होंने समाज का संगठन ही ऐसा किया जिसमें शोषण और हिसा के लिये कमसे कम स्थान रहे। उन्होंने मनुष्य के अधिकारका विचार नहीं किया; उसके धर्मका विचार किया । वह अपनी परम्परा और योग्यता के अनुसार समाजके हितका उद्योग करता था । उसमेंसे उसे रोटी भी मिल जाती थी, यह दूसरी बात थी। लेकिन उसमें करोड़ों को चूसने की भावना नहीं थी । लाभकी भावनोके बदले धर्मकी भावना थी । वे अपने धर्मका आचरण करते थे; रोटी तो यों ही चल जाती थी । समाजकी सेवा ही मुख्य चीज थी। उद्योग करनेका उद्देश्य व्यक्तिगत नफा नहीं था । समाजका संगठन ही ऐसा था । उदाहरणार्थ, गांव में बढ़ईकी जरूरत होती थी । वह खेती के लिये औज़ार तैयार करता था; लेकिन गांव उसे 1 ६०६ पैसे नहीं देता था । देहाती समाज पर यह बन्धन लगा दिया था कि उसे अनाज दिया जाय । उसमें भी हिंसा काफी हो सकती थी। लेकिन सुव्यवस्थित समाज में उसे न्याय मिलता था । और किसी जमाने में समाज सुव्यवस्थित था ऐसा मैं मानता हूँ । उस वक्त इन उद्योगों में हिंसा नहीं थी । एक उदाहरण मेरे इस विश्वासके काफी सबूत हैं । अपने छुटपन में जब मैं काठियावाड़ के देहातों में जाता था तो लोगों में तेज था । उनके शरीर हट्टे-कट्टे थे । नहीं रहे । इस परसे मुझको ऐसा लगता है आज वे निष्तेज हो गये हैं । घरमें दो बर्तन भी किसी वक्त हमारा समाज सुव्यवस्थित था । उ जीवन के लिये आवश्यक सब उद्योग अच्छी तरह वक्त उसका जीवन अहिंसक था । अहिंसक चलते थे । अहिंसक जीवनके लिये जितने उद्योग अनिवार्य हैं उनका अहिंसा से सीधा सम्वन्ध है । शरीर-श्रम इसीमें शरीर श्रम आ जाता है । मनुष्य अपने श्रम से थोड़ी सी ही खेती कर सकता है । लेकिन अगर लाखों बीघे जमीन के दो चार ही मालिक हो जाते हैं, तो बाकी के सब मज़दूर हो जाते हैं । यह बग़ैर हिंसा नहीं हो सकता । अगर आप कहेंगे कि वह मजदूर नहीं रखेंगे, यंत्रोंसे काम लेंगे; तो भी हिंसा आ ही जाती है। जिसके पास एक लाख बीघा ज़मीन पड़ी है, उसे यह घमण्ड तो आ ही जाता है कि मैं इतनी जमीनका मालिक हूँ। धीरे धीरे उसमें दूसरों पर सत्ता क़ायम करने का लालच आ जाता है । यंत्रों की मदद से

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