Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ वरोिंकी अहिंसाका प्रयोग [ श्री महात्मा गांधी ] [यह महात्मा गाँधीजीका वह भाषण है, जिसे उन्होंने गत २२ जूनको वर्धा में गाँधी-सेवा-संघकी सभामें दिया था । इसमें उन्होंने अपना सारा हृदय उँडेल कर रख दिया है और अपने पचास वर्षके अनुभवको बहुत स्पष्ट शब्दों में जनताके सामने रक्खा है । अहिंसा-सम्बंधी प्रश्नावलीका जो पत्र पीछे प्रकाशित हुआ है उसमें इसी पर ख़ास तौरसे ध्यान देनेकी प्रेरणा की गई है। यह पूरा भाषण पहिले 'सर्वोदय' में प्रकाशित हुआ था, अब इसी अगस्त मासके 'तरुण ओसवाल' में भी प्रकट हुआ है । 'तरुण ओसवाल' में जहाँ कहीं छपनेकी कुछ अशुद्धियाँ रह गई थीं, उन्हें 'सर्वोदय' परसे ठीक करके दिया जा रहा है । पाठकोंको यह पुरा भाषण गौरके साथ पढ़ना चाहिये । -सम्पादक ] मेरी साधना मैंने जाजूजी के पास कुछ प्रश्न दिये। इस कारण यह है कि मेरे दिलमें भी अनेक तरह के विचार आते रहते हैं। मैंने आज तक अहिंसा या ग्रामोद्योगके जो विचार और कार्यक्रम जगत के सामने रखे, उसका मतलब यह नहीं था कि मेरे पास कोई बने-बनाये सिद्धान्त पड़े हैं, या मैंने कोई अन्तिम निर्णय कर लिये हैं । परन्तु फिर भी इस विषयमें मेरे कुछ विचार तो हैं ही । पचास वर्ष तक मैंने एकही चीज्रकी साधना की है। ज्ञान पूर्वक विचार भले ही न किया हो, लेकिन फिर भी विचार तो होता ही रहा । उसे आप मेरी अन्तर- आबाज्र कहें या अनुभवका परिणाम कहें। जो कुछ हैं, आपके सामने रखता हूँ । पचास साल तक उसी अन्दरको आवाजको श्रवण करता रहा हूँ । 'अहिंसा' शब्द निषेध जो अहिंसक है, उसके हाथमें चाहे कोई भी उद्यम क्यों न रहे, उसमें वह अधिक-से-अधिक अहिंसा लाने की कोशिश करेगा ही । यह: तो वस्तु स्थिति है कि बरौर • हिंसा के कोई भी उद्योग चल नहीं सकता । एक दृष्ट्रि जीवन के लिये हिंसा अनिवार्य मालूम होती है। हम हिंसाको घटानाचाहते हैं, और हो सके तो उसका लोप करना चाहते हैं । मतलब यह कि हम हिंसा करते हैं, परन्तु अहिंसा की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं । हिंसाका त्याग करने की हमारी कल्पना में से अहिंसा निकली है । इसलिये हमें शब्द भी निषेधात्मक मिला हैं । 'अहिंसा शब्द निषेधात्मक हैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70