Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 56
________________ ६०८ अनेकान्त ' 'अहिंसा' की मर्यादित व्याख्या अर्थात् जो अहिंसाको मानता है, वह जो उद्योग करेगा, उसमें कम से कम हिंसा करनेका प्रयत्न करेगा । लेकिन कुछ उद्योग ही ऐसे हैं, जो हिंसा बढ़ाते हैं । जो मनुष्य स्वभावसे ही श्रहिंसक है, वह ऐसे चन्द उद्योगोंको छोड़ ही देता है। उदाहरणार्थ,यह कल्पना ही नहीं की जा सकती कि वह कसाईका धन्धा करेगा । मेरा मतलब यह नहीं है कि मांसाहारी कभी अहिंसक हो ही नहीं सकता मांसाहार दूसरी चीज़ हैं | हिंदुस्तान में थोड़े से ब्राह्मण और वैश्योंको छोड़कर बाकी सब तो मांसाहारी ही हैं । लेकिन फिर भी, वे अहिंसाको परमधर्म मानते हैं । यहाँ हम मांसाहारी की हिंसा का विचार नहीं कर रहे हैं। जो मनुष्य माँसाहारी हैं, वे सारे हिंसावादी नहीं हैं। मैं यह कैसे कह सकता हूँ कि मांसाहारी मनुष्य हिंसक नहीं होता ? ऐंड्र जसे बढ़कर अहिंसक मनुष्य कहाँ मिलेगा ? लेकिन वह भी तो पहले माँसाहारी था। बाद में उसने मांसाहार छोड़ दिया। लेकिन जब माँसाहारी था, तब भी अहिंसक तो था ही। छोड़ने पर भी, मैं जानता हूँ, कि कभी २ जब वह अपनी बहन के पास चला जाता था तब माँस खा लेता था, या डाक्टर लोग आग्रह करते थे तो भी खा लेता था । लेकिन उससे उसकी अहिंसा थोड़े ही कम हो जाती थी ? इसलिये यहाँ पर हमारी अहिंसाक़ी व्याख्या परिमित है । हमारी मनुष्यों तक ही मर्यादित है । हिंसा हिंसक और अहिंसक उद्योग [ श्रावण, वीर निर्वाण सं० २४६६ छोड़ ही देता है। जैसे वह शिकार कभी नहीं करेगा। यानी जिनमे हिंसाका विस्तार बढ़ता हो जाता है उन प्रवृत्तियों में वह कभी नहीं पड़ेगा । वह युद्ध में नहीं पड़ेगा | युद्ध में शस्त्रास्त्र बनाने के कारखानोंमें काम नहीं करेगा। उनके लिये नये नये शस्त्रों की खोज नहीं करेगा | मतलब, वह ऐसा कोई उद्योग नहीं करेगा, जो हिंसा पर ही आश्रित है और हिंसाको बढ़ाता है । अत्र, काफी उद्योग ऐसे भी हैं, जो जीवन के लिये आवश्यक हैं; लेकिन वे बिना हिंसा के चल ही नहीं सकते। जैसे खेतीका उद्योग है। ऐसे उद्योग अहिंसा में आ जाते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें हिंसा की गुंजाइश नहीं है, अथवा वे बिना हिंसा के चल सकते हैं। लेकिन उनकी बुनियाद हिंसा नहीं है और वे हिंसा को बढ़ाते भी नहीं हैं। ऐसे उद्योगों में होने वाली हिंसा हम घटा सकते हैं और उसे अपरिहार्य हिँसाकी हद तक ले जा सकते हैं। क्यों कि आखिरी अहिंसा हमारे हृदयका धर्म है । हम यह नहीं कह सकते कि किसी उद्योगका हिंसासे अनिवार्य सम्बन्ध है । वह तो हमारी भावना पर निर्भर हैं। हमारा हृदय अहिंसा होगा, तो हम अपने उद्योग में भी अहिंसा लाएँगे । अहिंसा केवल वाह्य वस्तु नहीं है । मान लीजिये एक मनुष्य हैं, काफी कमा लेता हैं और सुखसे रहता है। किसीका कर्ज वगैरह नहीं करता, लेकिन हमेशा दूसरोंकी इमारत और मिलकियत पर दृष्टि रखता है, एक करोड़ के दस करोड़ करना चाहता हैं, तो मैं उसे अहिंसक नहीं कहूँगा । ऐसा लेकिन माँसाहारी अहिंसक भी बाज चीज तो कोई धन्धा नहीं, जिसमें हिंसा हो ही नहीं । लेकिन

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