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अनेकान्त
वह दूर दूर लोगों को भी गुलाम बना लेता है । और उन्हें इसका पता भी नहीं होता, कि वे गुलाम बन रहे हैं। गुलाम बनाने का ऐसा एक खूबसूरत तरीका इन लोगोंने ढूंढ लिया है। जैसे फोर्ड है । एक कारखाना बनाकर बैठ गया है । चन्द आदमी उसके यहाँ काम करते हैं। लोगोंको प्रलोभन दिखाता है, विज्ञापन निकालता है । हिंसक प्रवृत्तिका ऐसा मोहक रास्ता निकाल लिया
है कि हम उसमें जाकर फँस जाते हैं और भस्म हो जाते हैं। हमें इन बातोंका विचार करना है। कि क्या हम उसमें फँस जाना चाहते हैं या उससे बचे रहना चाहते हैं ?
[ श्रावण, वीर निर्वाण सं० २४६
वह अपने ब्रह्माण्डका बोझ अपने कंधे पर लिये फिरता है जो धर्म व्यक्ति के साथ खतम हो जाता है, वह मेरे कामका नहीं है । मेरा यह दावा है कि सारा समाज अहिंसा का आचरण कर सकता है और आज भी कर रहा है । मैंने इसी विश्वास पर चलने की कोशिश की है और मैं मानता हूँ कि मुझे उसमें निष्फलता नहीं मिली । अहिंसा समाजका प्राण है
मेरा विशेष दावा
अगर हम अपनी अहिंसाको अविच्छिन्न रखना चाहते हैं और सारे समाजको अहिंसक बनाना चाहते हैं, तो हमें उसका रास्ता खोजना होगा । मेरा तो यह दावा रहा है कि सत्य, अहिंसा, वगैरह जो यम हैं, वे ऋषि मुनियोंके लिये नहीं हैं। पुराने लोग मानते हैं कि मनुने जो
बतलाये हैं वे ऋषि-मुनियोंके लिये हैं, व्यवहारी मनुष्योंके लिये नहीं हैं । मैंने यह विशेष दावा किया है कि अहिंसा सामाजिक चीज़ है । मनुष्य केवल व्यक्ति नहीं है; वह पिण्ड भी है और ब्रह्माण्ड भी । वह अपने ब्रह्माण्डका बोझ अपने कंधे पर लिये फिरता है । जो धर्म व्यक्ति के साथ खत्म हो जाता है, वह मेरे कामका नहीं है। मेरा यह दावा है कि अहिंसा सामाजिक चीज़ है। केवल व्यक्तिगत चीज़ नहीं है। मनुष्य केवल व्यक्ति नहीं है; वह पिण्ड भी है और ब्रह्माण्ड भी ।
मेरे लिये अहिंसा समाजके प्राण के समान चीज है । वह सामाजिक धर्म है, व्यक्तिके साथ खतम होनेवाला नहीं है। पशु और मनुष्य में यही तो भेद है। पशुको ज्ञान नहीं है मनुष्यको है । इस लिए अहिंसा उसकी विशेषता है। वह समाज के लिए भी सुलभ होनी चाहिये । समाज उसीके बल पर टिका है । किसी समाज में उसका कम विकास हुआ है, किसी में बेशी विकास हुआ है। लेकिन उसके बिना समाज एक क्षण भी नहीं टिक सकता। मेरे दावे में कितना सत्य है, इसकी आप शोध करें । आपका कर्तव्य
मैं जो यह कहा करता हूं कि सत्य और अहिंसा से जो शक्ति पैदा हो जाती है उसकी तुलना किसी दूसरी शक्ति से नहीं हो सकती, क्या वह सच है ? इसकी शोध भी आपको करनी चाहिये। हमें उस शक्तिकी साधना करके वह अपने जीवन में बितानी चाहिये । तब तो हम उसका प्रत्यक्ष प्रमाण दे सकेंगे। गाँधी सेवा संघका यह कर्तव्य है कि ह मेरे दावेका परीक्षण करे। क्या अहिंसा करोड़ों लोगोंके करने जैसी चीज़ है ? क्या हिंमा अहिंसा का मिश्रण ही व्यहार के लिये जरूरी है ? क्या