Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 67
________________ वर्ष ३, किरण १०] वीरोंकी अहिंसाका प्रयोग बुद्धिके उपयोग का क्षेत्र है । मैं यह नहीं कहता कि हम अपना कार्य छोड़ आपकी बुद्धिके उपयोगका क्षेत्र बताने के लिए दें। उसे तो आग्रह पूर्वक चलाना ही है लेकिन मैंने ये प्रश्न बनाए । ये मौलिक प्रश्न हैं । उनका हम जागृत होका काम करेंगे, तभी सिद्धि मिलेगी। उत्तर आप एक दिन में नहीं दे सकते । मैं यहाँ हमारी बुद्धि मन्द होगी तो हमारा काम बिगड़ने तक नहीं पहुँचा कि उन पर पुस्तक लिखं फिर भी, वाला है। मेरे दिमाग़में कुछ उत्तर तो हैं । मैं पुस्तक लेखक मेरा दर्द नहीं बन सकता । पुस्तक लेखक तो दूसरों को इस दृष्टिसे कल जो प्रस्ताव हुआ, वह आपको बनना है। मेरे पास इतनी फुरमत कहाँ है ? जो अध्ययन और खोजका मौका देगा। उस प्रस्ताव लोग अध्ययन और खोज करेंगे वे पुस्तक लिखेंगे। से हमारी आबोहवा दुरुस्त होनी चाहिये । हमें पुस्तक लिखना भी कम महत्वका काम नहीं है। इस बातकी खोज करनी चाहिये कि काँग्रेसके जैसे रिचर्ड ग्रेग हैं । वे मेरे पाससे सिद्धान्त ले महामण्डलको यह प्रस्ताव क्यों करना पड़ा ? जो गये । अध्ययन और खोज करके पुस्तकें लिखते यह कहेगा कि महामण्डलके लोग डरपोक हैं, वह हैं । मैं जो कहनेको डरता था वह आज वह ग्रेग देश-द्रोह करेगा । उन्होंने जो आबोहवा देखी कह रहा है । मैं तो कहता था कि चरखा हिन्दु- उसका वह प्रस्ताव प्रतिघोष है। मैं उस आबोस्तान के लिए है । वह तो कहता है कि सारी हवाका प्रतिघोष नहीं हो सकता क्योंकि अहिंसा दुनियाका कल्याण चरखे में और ग्राम उद्योगोंमें मेरी व्यक्तिगत साधना भी है । काँग्रेसकी वह भरा है । योरुप और अमेरिकाके लिए भी साधना नहीं है। मुझे तो उसीमें मरना है । अहिंसाकी साधनाका दूसरा रास्ता नहीं है।' काँग्रेस के प्रतिनिधि मेरे जैसा नहीं कर सकते । प्रेग कहता कि दूसरी तरहसे अहिंसक जीवन उनकी साधना अलग है । इसलिये अब न वे मेरे असम्भव है । मैं कहनेसे हिचकता था । लेकिन साथ चल सकते हैं, और न मैं उनके साथ चल वह तो बहादुर आदमी है । उसने निर्भय होकर सकता हूँ। उनके लिये मेरे दिलमें धन्यवाद है। कह डाला । मैंने इस तरह खोजबीन और अध्ययन इस बात का दुख भी है कि इतने दूर तक साथ नहीं किया है । अन्तर्नादने जो मुझे आदेश दिया चलने पर भी मैं उन पर अपना असर क्यों नहीं और प्रत्यक्ष अनुभव से जो मैंने देखा, वह जगतके वह जगतक डाल सका ? उन्होंने मुझे अपना मार्ग-दर्शक माना सामने रखता गया। अगक समान लेखबद्ध करक था। बड़ी श्रद्धासे बाग डोर मेरे हाथमें दी थी। शास्त्र नहीं बनाया । उसको बुद्धिने जो काम किया, फिर भी, मैं उनके दिलमें विश्वास नहीं पैदा कर क्या आपकी बुद्धि भी वह कर सकती है ? सका। इसका मुझे दर्द है। विपक्षी जो कहते हैं, उसका अनादर नहीं करना चाहिये । उनकी दृष्टि से उन प्रश्नोंका विचार रचनात्मक कार्यक्रमका महत्व करके उन्हें उनकी भाषामें समझाना हमारा काम आप इस विषय की शोध करें । हमें तो

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