Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 65
________________ ariat अहिंसाका प्रयोग वर्ष ३, किरण १० ] आप मेरे सह- साधक हैं मेरी यह इच्छा है कि आप लोग अहिंसा की साधना में मुझसे भी आगे बढ़ जायँ । क्योंकि मैं सिद्ध नहीं हूँ, आप मेरे सह-साधक हैं पास अहिंसाका जो धन है, उसे मैं घर२ बाँट देना चाहता हूँ । उसमें कसर नहीं करना चाहता । । मेरे आपको अपने दिलमें सोचना चाहिये कि "यह मैंने काँग्रेस क्यों छोड़ी ? जो कुछ हमें दे रहा है, उसका हम सारी भूमि में सिंचन करें । यह तो बूढ़ा हो गया है; हम तो तरुण हैं | हम इसके दिये हुए धनको बढ़ावेंगे !” इस तरह सोच कर आप मुझसे आगे बढ़ "जायँगे तो मैं आपको आशीर्वाद दूँगा । मैं अकेला नहीं हूँ मैं जानना चाहता हूँ कि आपमें से कितने मेरे साथ इस रास्ते चलने को तैयार हैं? अगर कोई आया तो मुझे अकेला भी चलना ही है । मैं सत्तर साल का हो गया हूँ, तो भी बूढ़ा हो गया हूँ ऐसा तो नहीं समझता । और मैं कभी अकेला तो हो नहीं सकता। और कोई नहीं तो, भगवान मेरे साथ रहेंगे। मुझे अकेलेपनका अनुभव कभी होता ही नहीं । आपकी अगर अहिंसा के मार्ग में श्रद्धा है, तो आप अपना परीक्षण करें। कितने आदमी इस रास्ते चलनेको तैयार हैं,इसकी खोज करें। कांग्रेस वालोंको टटोलें । यह सब खोज मैं नहीं कर सकता । क्या आप काँग्रेसके महाजनों को अहिंसा की शक्ति दे सकते हैं ? वे क्या करते; वे तो लाचार थे । जब वे देखते हैं कि लोगों में अहिंसा की एक बून्द ६१७ भी नहीं है, तो वे कह देते हैं, 'हम क्या करें; हम आपका रास्ता नहीं ले सकते' । मैंने जिस तरह पदाधिकार छोड़ दिया, उस तरह वे तो नहीं छोड़ सकते। मैं अहिंसाको अपनी व्यक्तिगत साधना भी समझता हूँ । वे तो नहीं समझते । इस पर से आप समझायेंगे कि मैंने काँग्रेस छः साल पहले छोड़ दी, यह ठीक ही किया। उसकी अधिक सेवाकी । उसी वक्त मैंने देख लिया कि कांग्रेस में कई लोग ऐसे आ गये हैं, जो अहिंसाको नहीं मानते; जिनको अहिंसाने स्पर्श भी नहीं किया है । मैं उनसे काम कैसे ले सकता था ? साथ साथ मैंने यह भी देखा कि कई अहिंसा के पुजारी काँग्रेस के बाहर पड़े हैं । इसीलिये मैंने अलग हो जाना ही ठीक समझा। आज आप देखते हैं कि मैंने सही काम किया । क्योंकि मैंने देख लिया कि मैं दूसरी तरह की कोई सेवा नहीं कर सकता । सिवाय अहिंसा के मुझमें दूसरी कोई शक्ति नहीं है । तब मैं वहाँ रह कर क्या करता ? मुझमें जो कुछ शक्ति है वह अहिंसाकी ही शक्ति है । मैं अपनी अपूर्णता जानता हूँ । मेरी अपूर्णता मुझसे अधिक कोई नहीं जानता । लेकिन फिर भी मनुष्य अभिमानी होता है । इसलिये मैं जिन अपूर्णताओंको नहीं देखता, उन्हें आप देख लेते हैं; और मैं आत्म-परीक्षण करता रहता हूँ, इसलिये मेरी जिन अपूर्णताओं को आप नहीं देख सकते; उन्हें मैं देख लेता हूँ । इस तरह दोनोंका जोड़कर लेता हूँ ।

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