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वर्ष ३, किरण १० ]
वीरोंकी अहिंसाका प्रयोग
हो सकता । तब तो हमको ऐलान कर देना चाहिये स्वभावसिद्ध कार्य ही स्वधर्म है
कि हम लोगों के प्रतिनिधि नहीं बन सकते ।
दिली अहिंसा
अगर आप कांग्रेस में रहकर अहिंसाका प्रचार करना चाहते हैं, तो आपको खबरदार रहना होगा । आपकी अहिंसा सच्ची अहिंसा होनी चाहिये | अगर मैं दिलसे भी किसी आदमीको मारना चाहता हूँ तो मेरी अहिंसा ख़तम है । मैं शरीर से नहीं मारता, इसका मतलब यही है कि मैं दुर्बल हूँ | किसी आदमीको लकवा हो जाय तो वह मार नहीं सकता । उसी तरह की मेरी अहिंसा हो जाती है । अगर आप दिलसे भी अहिंसक हैं तो कांग्रेस के महाजनोंसे कह सकते हैं कि हम तो शुद्ध हिंसा के प्रयोग के लिए तैयार हैं। High
उस हालात में आपको अपना परीक्षण करना
होगा, फ़जरसे शाम तक आप जो जो कार्य करेंगे, उसके द्वारा शुद्ध अहिंसाकी साधना करनी होगी । केवल दिखावे के लिए नहीं, केवल भावुकतासे नहीं | हम केवल भावुक बनेंगे तो वहममें फँसेंगे | भावुकता के सिलसिले में मुझे एक किस्सा याद आता है । मेरे पिताजी के पास एक सज्जन
आया करते थे | बड़े भावुक थे, वहमी थे । जहाँ
किसीने छींक दिया कि बैठ गये उनके घरसे आने के लिए पाँच मिनट लगते थे । लेकिन इन भाई को पचास मिनट लग जाते थे । छींकों के कारण बेचारे रुक जाते थे । इसी तरह हम भावुकता से हिंसा के नाम पर सभी कामोंसे हट सकते हैं । मैं ऐसा नहीं चाहता। हम सब ऐसे भावुक न बनें।
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जो कुछ हम करें, वह धर्मकी भावना से करें । केवल भावुकतासे नहीं । मैं आज यहाँ बोलने आ गया हूँ | अपना धर्म समझ कर आया हूँ । मौन तो मेरा स्वभाव हो गया है । मौन मुझको मीठा लगता है । वह मेरा विनोद हो गया है । मनुष्यका कर्तव्य भी जब स्वभाव-सिद्ध हो जाता है, तो वही उसका विनोद हो जाता है । कर्तव्य क्या रहा ? वह तो उसका स्वभाव हो गया; आनन्द हो गया । अब तो मेरे लिए मौन स्वभावसिद्ध हो गया है। इसी तरह अहिंसा हमारे लिए स्वभाव - सिद्ध हो जाना चाहिये । कर्तव्य जब स्वभाव - सिद्ध हो जाता है, तब वह हमारा स्वधर्म हो जाता है ।
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उसी तरह आप दिन भर जो करेंगे, उसके साथ अहिंसाका तार चलता ही रहेगा । चाहे झूठे तर्क शास्त्र के आधार पर क्यों न हो, आपके लिये अहिंसा ही परम धर्म होगा । झूठे तर्क शास्त्रको ही माया कहते हैं । दूसरोंके लिए वह माया है लेकिन हम जब तक उसमें फँसें हैं, तब तक हमारे लिए वह माया नहीं है । हमारे लिए वह सत्य ही है । मैं जानता हूँ कि इस चरखे पर ज्यों ज्यों एक तार कातता हूँ त्यों त्यों मैं स्व
राज्यके नजदीक जाता हूँ। यह माया हो सकती है; लेकिन वह मुझे पागलपनसे बचाती है । आपको इस तरह अनुसंधान करना चाहिये । अहिंसक उपकरणके यज्ञ
यह चरखा मेरे लिए अहिंसाकी साधनाका औजार है । वह जड़ वस्तु है । लेकिन उसके साथ