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वर्ष ३, किरण १० ]
ये
राष्ट्रकूट चन्द्रवंश के यदुकुल वाले हैं, ऐसा उनके निम्न लेखोंसे मालूम पड़ता है (१) ई० सन ९३३ के शासन मेंवंशः सोमादयं
-:
नृपतु कामतविचार
वंशो बभूव भुवि सिन्धुनिभो यदूनाम् ।
( प्रा० ले० मा० नं० १ )
२) ई० सन ९३७ के चित्रदुर्गं नं० ७६ के शासन में-
'यादवरातनन्वजर ू ॥
यादवकुलदोलपलरूं ।
मेदिनियं सुखदिनालदरवरिं बल्लियं ॥
ही हैं,
श्रीदप्तन्दन्तिगन्.........(E. C. Vol XI ) - उस यदुवंश के सात्यकी वर्ग के लोग यह बात उनके कुछ शासनों में पाई जाती है । ई० सं० ९४० केउद्वृत्तदैत्य कुलकंदलशान्तिहेतुस्तत्रावतारमकरोत् पुरुषः पुराणः ॥ तद्वंशजा नगति सात्यकिवर्गभाजस्तुरंगा इति चितिभुजः प्रथिता बभूवुः ॥ ( प्रा० ले० मा० नं० १५६ ) इसी श्लोकका उत्तरार्ध इनके ई० सं० ९५९ के शासन में एक और रीति से इस प्रकार है
तद्वंशजाः जगति तुंगयशः प्रभावास्तुगा इति चितिभुजः प्रथिता बभूवुः (प्रा० ले० मा० नं० १३३ ) इससे इन नरेशों के नामों में ( अर्थात इनके गौण नामों में ) 'तुंग' इस पर पदके रहनेका क्या कारण है सो मालूम पड़ता है । इसी तरहसे इनमें से ज्यादा कम सबको 'वर्ष' इस परपदका व्यपदेश है इस पर ध्यान देना चाहिये ।
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इन नरेशों में प्रत्येक नरेशके नामधेयों में तथा गौण नामों में एक तरहका परंपरा और क्रमबद्ध संबन्ध है यह तो भूलना नहीं चाहिये जैसे कि इनके'गोविन्द' नामवालेको 'जगतुंग' और 'प्रभूतवर्ष' इस प्रकारका गौण नाम है, 'कृष्ण' (कन्नर ) नाम वालेको 'शुभतुंग' और 'अकालवर्ष' इस प्रकारका विशेष नाम है; 'ध्रुव' ( घोर ) नाम वालोंको 'निरुपम' और धारावर्ष ऐसा व्यपदेश है, 'कर्क' (कक्क) नामके व्यक्तियोंको 'नृपतुंग' और 'अमोघवर्ष' ऐसी उपाधि है ।
इस कारण से यह एक साकूत (सार्थक ) अनुमान होता है कि इस वंशावलीके, 'ध्रुव' नामक नरेशों में 'तुंग' यह परपदयुक्त गौण नाम नहीं देखा जाने से अब तक मिले हुए उनके शासनादि कोंमें वह न मिला इतना ही कह सकते हैं, परन्तु उनको 'तुंग' यह परपदान्वित नाम भी होगा, इस प्रकार कह सकते हैं । वैसे ही हमारे इस लेख के नायक नृपतुंग के 'नृपतुंग' 'अमोघवर्ष' इस • प्रकार के गौण नामोंका परिशीलन करने पर मालूम पड़ता है कि उसका नामधेय 'शर्व' इतना
* इस राष्ट्रकूटवंशके गुजरात शाखाके दूसरे 'ध्रुव' को 'अतितुंग' ऐसा नाम भी था ( 'शुभतु गजोतितुं ग... प्रा० ले० मा० नं० ४ ) । उस नामके और नरेशों को भी वहीं नाम रहा होगा ।
+ श्रवणबेलगुलके नं० ६७ के शासन ( E.C. Vol. II) में 'राजन् साहसतुंग सन्ति बहवः श्वेतात - पत्रा नृपाः ।' ऐसा लेख है। इस 'साहसतुरंग' नामका नरेश राष्ट्रकूट वंशीय 'दन्तिदुर्ग' होना चाहिये, ऐसा उन शासनों के उपोद्घात ( ०४८ ) कहा है ।