Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 38
________________ अनेकान्त [श्रावण, वीर निर्वाण सं०२४६६ तम्पितृनिजनामकृते ख्याते बंकापुरे पुरेष्वधिके ॥३॥ है :शकनृपकालाभ्यन्तरविंशत्यधिकाष्टशतमिताब्दान्ते । यस्य प्रांशुनखांशुजालविसरद्धारान्तराविर्भवत् । मंगलमहार्थकारिणि पिंगलनामनि समस्तजनसुखदे ॥३६ पादाम्भोज रजः पिशंगमुकुटप्रत्यग्ररत्नद्युतिः ॥ अर्थात्-राष्ट्रकूट वंशके (नपतुंगके पुत्र) संस्मर्ता स्वयममोघवर्षनृपतिः पूतोहमद्येत्यलं । अकालवर्ष नामक दूसरे कृष्णके शासन करते वक्त स श्रीमान् जिनसेनपूज्यभगवत्पादो जगन्मंगलम्||१०॥ ( उसका सामन्त ) 'चेल्ल पताक' नामक लोकादित्य जैनधर्मकी अभिवृद्धि कर्ता हुआ । 'वनवास + इससे अमोघवर्षने जिनसेनको वन्दन करके अपनेको अब ही (='अद्य' ) धन्य माना यह देश पर शासन करते वक्त (उस वनवास देशमें) उस लोकादित्यके पिताके नामसे निर्मित 'बंकापुर बात मालूम पड़ती है, इसके सिवाय जिनसेनसे जैनधर्मावलम्बन किया या स्वधर्म छोड़कर जिन(इस नामकी उसकी राजधानी ) में शक सं०८२० सेनका शिष्यत्व ग्रहण किया है, ऐसा अर्थ निक( ई० स०८९७-८ ) में गुणभद्र ने 'उत्तरपुराण' लता है या नहीं सो मैं नहीं जानता। इसके सिवाय लिखकर समाप्त किया। उसमें 'अद्य' यह शब्द रहनेसे जिनसेन और अमोघवर्षके बीचमें एक समय परस्पर भेटका .. क्या नृपतुंग जैन था ? वर्णन मालूम पड़ता है, इससे ज्यादा अर्थ उसमें (अ) जिनसेन, गुणभद्रके काव्योंमें स्थित उल्लेख अनुमान करना ठीक नहीं मालूम होता है। ___५. नृपतुंगने जैनधर्मको स्वीकार किया, इस अथवा अमोघवर्ष जिनसेनसे जैनदीक्षा लेकर बातको मानने वाले उसे जिनसेनद्वारा जिनधर्ममें उसका शिष्य हुआ होगा तो गणभद्रने उसे दीक्षित हुआ विश्वास करते हैं उनके इस विश्वास. स्पष्ट क्यों नहीं किया? इमी गुणभद्रने अपने 'उत्तर संबन्धमें गुणभद्र के 'उत्तरपुराण' का यह वृत्त पुराण में बंकापरके लोकादित्यको 'जैनेन्द्रधर्मवद्धिही अन्य आधारोंसे प्रबल आधार है । इस विधायी' इस प्रकार नहीं कहा क्या ? अमोघवर्ष बातको भूलना नहीं । वह वत्त इस प्रकार ने गुणभद्र के खास गुरुसे ही जैनधर्मका अवलंबन किया होगा तो उसे वैसे ही उल्लेख क्यों नहीं । बम्बई प्रान्तके उत्तर कन्नड जिलाके वनवासी। किया ? और अमोघवर्ष अपने गुरुका शिष्य था, . : (in the Prasasti of the 'Uttar तो वह अपना सधर्मी होनेसे गुणभद्र ने अपने purana') we are told that he (i. e. Nripatunga or Amoghavarsha I) be. _ 'उत्तरपुराण' को अपने सधर्मीके पुत्र अकालवर्षके came the disciple of Jinasena the well आस्थानमें या राजधानीमें अथवा उसके राज्यके known Jaina Author, who also bears. किसी और स्थानमें न लिखकर उसके सामन्त testimony to the fact in tae Parsabh- राज लोकादित्यकी राजधानीमें क्यों लिखा ? yudaya) 1. A. pp. 216-217 (क. मा. उपो- - द्घात १०६) जै०सि०भा० १, १, २७; वि०र० मा० पृ० २६.

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